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________________ खत्तपरूवणा संजदासंजदा० धादि०४ जह० संखेज्जा । अज० असंखेज्जा। सेसाणं जह० अज० असंखेज्जा । तिण्णिले०-अब्भवसि०-असण्णि-आहारग' त्ति तिरिक्खोघं। सुकाए घादि०४ जह० संखज्जा । अज० असंखज्जा। आउ० जह० अज० संखज्जा । सेसाणं जह० अज० असंखेज्जा । एवं खइगसम्मा० ।। एवं परिमाणं समत्तं १६ खेत्तपरूवणा २०३. खेत्तं दुविहं-जह• उक्क० । उक० पगदं। दुवि०-ओघे० आदे० । ओधे० अट्ठण्णं कम्माणं उक्क० अणुभागवंधगा केवडि खेत ? लोगस्स असंखेज्जदिमागे । अणुक्क० सव्वलोगे । एवं तिरिक्खोघो कायजोगि-ओरालि०-ओरालियमि०-कम्मइ०-णवंस०कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज०- अचक्खुदं०-तिण्णिले० - भवसि० - अब्भवसि०मिच्छादि०-असण्णि-आहार०-अणाहारग ति । २०४. एइंदिएसु० घादि०४ उक० अणु० सव्वलो। वेद०-णाम० उक्क० लोगस्स संखज्ज० । अणु० सव्वलो० । आउ०-गोद० उक्क० लोग० असं० । अणु० सव्वलो०। बादर०-बादरपज्जत्त-अपज्जत्त. आउ० उक० लो० असं० । अणु० जीवोंमें चार घातिकोंके जघन्य अनुभागके बन्धक जीव संख्यात हैं। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। शेष कर्मो के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। तीनलेश्यावाले. अभव्य, असंज्ञी और आहारक जीवोंके सामान्य तियेंचोंके समान भंग हैं। शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें चार घाति कमों के जघन्य अनुभागके बन्धक जीव संख्यात हैं, अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात है। आयुकमेंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें जानना चाहिये। इस प्रकार परिमाण समाप्त हुआ। १९ क्षेत्रप्ररूपणा २०३. क्षेत्र दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे आठ कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बंधक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यंच, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्र काययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, ताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनारक जीवोंके जानना चाहिये। २०४. एकेन्द्रियोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों का सबलोक क्षेत्र है। वेदनीय और नामकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। आयु और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बंधकजीवोंका सव लोक क्षेत्र है। बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त और बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त १ ता० प्रतौ श्राणाहाण इति पाटः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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