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________________ महाबंध अणुभागबंधा हियारे O 0. कम्मइ० - तिण्णिले० - अब्भवसि ० - असण्णि० - अणाहारग त्ति । [ णवरि कम्मद ० - अणाहा० उ० णत्थि । ] सव्वपंचिदियतिरिक्खेसु अटुण्णं कम्माणं उक्क० अणु० असंखेजा । १३. मणुसे अट्ठण्णं क० उक्क० संखेजा । अणु० असंखेजा । मणुसपजत्त'म सिणीस अण्णं कम्माणं उक्क० अणु० संखेजा' । एवं सव्वट्ट - आहार०-३ ० - आहार मि० अवगदवे ० - मण पज्ज० - संजद - सामाइ ० - छेदो ० - परिहार० - सुहुमसंप० । १६४. एइंदि० - वणफदि-णियोदाणं सत्तण्णं कम्माणं उक्क० अणु० अणंता । आउ • उक्क० संखेजा । अणु० अनंता । तेउ० - वाउ० ' 1 १५. पंचिंदि० ' -तस०२ घादि०४ उक्क० अणु० असंखेजा । वेद०- - आउ०णामा० - गोद० उक० संखेजा । अणु० असंखेजा । एवं पंचमण० - पंचवचि ० - इत्थि - पुरिस० - भि० - सुद० - ओधि ० - चक्खुदं ० - ओधिद ० तेउ०- पम्म० - सुक्कले ० - सम्मादि ० खड्ग ० -- वेदग ० -उवसम ० ' सष्णि त्ति । णवरि सुक्क० खड़गे आउ० दो वि पदा संखेजा । १६६. वेउव्वियमि० सत्तण्णं क० उक्क० अणु० असंखेजा । अधवा अघादीणं 9 उक० अणु ० असंखेजा । 1 / ८४ अनुभागके बन्धक जीव अनन्त हैं । इसी प्रकार कार्मणकाययोगी, तीन लेश्यावाले, अभव्य, असंज्ञी और अनाहारक जीवों के जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में आयुकर्मका बन्ध नहीं होता । सब पचेन्द्रिय तिर्यों में आठों कर्मों के उत्कृष्ट और अनु त्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। 1 १६३. मनुष्यों में आठों कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव संख्यात हैं । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियों में आठों कर्मो के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, आहार मिश्र काययोगी, अपगतवेदी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवोंके जानना चाहिये । ww १६४. एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें सात कर्मोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीव अनन्त हैं। आयु कर्मके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीव संख्यात हैं। त्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीव अनन्त हैं। अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीव असंख्यात हैं 1 १६५. पञ्चेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस और बस पर्याप्त जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं । वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीव संख्यात हैं । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं । इसी प्रकार पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधि - ज्ञानी, चतुदर्शनी, अवधिदर्शनी, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्या वाले, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, वेदक सम्यग्दृष्टि, उपशम सम्यग्दृष्टि और संज्ञी जीवों के जानना चाहिये । इतनी विशेषता है। कि शुक्लेश्यावाले और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें आयुकर्म के दोनों ही पदवाले जीव संख्यात हैं । १६६. वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके १ ता० श्रा० प्रत्योः मणुसपजत्ता इति पाठः । २ ता० प्रती क० अ० श्रसंखेजा, प्रा० प्रती कम्माणं उक्क० अ० श्रसंखेज्जा इति पाठः । ३ ता० प्रा० प्रत्योः प्रायः सर्वत्र संजदा इति पाठः । ४ ता० प्रती वा० उ० उक्क० इति पाठः । ५ ता० प्रतौ पंचिंदि० पंचिदि० इति पाठः । ६ ताप्रतौ खइग० उवसम० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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