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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे णिमि० णि• बं० । णि अणु० संखेजगुणही ।
१०५. सासणे छण्णं कम्माणं अोघं । अणंताणुबंधिकोध० उक्क हिदिवं. पएणारसक०-इत्थि-अरदि-सोग-भय-दुगु णि० वं० । णि तं तु० । एवमेदाओ एकमेक्कस्स । तं तु० । पुरिस० उक्क हिदिवं. सोलसक-भय-दुगु णि. बं. संखेजदिभागू० । हस्स-रदि० सिया० । तं तु । अरदि-सोग सिया० संखेजदिभागू० । हस्स० उक्क हिदिवं. सोलसक-भय-दुगुणिय० बं० संखेजदिभागू० । इत्थि० सिया० संखेजदिभागू० । पुरिस० सिया० । तं तु० । रदि० णियमा० । तं तु० । एवं रदीए वि।। होता है जो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातगुणहीन स्थितिका बन्धक होता है।
१०५. सासादन सम्यक्त्वमें छह कौका भङ्ग ओघके समान है। अनन्तानुबन्धी क्रोधको उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव पन्द्रह कषाय, स्त्रीवेद, अरति, शोक. भय
और जुगुप्साका नियमसे बन्धक होता है। किन्तु वह उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट,एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार इन सब प्रकृतियोंका परस्पर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ऐसी अवस्थामें वह उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्ट की अपेक्षा अनुत्कृष्ट,एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थिति का बन्धक होता है। पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भागहीन स्थितिका बन्धक होता है। हास्य और रतिका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तोउत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टको अपेक्षा अनुत्कृष्ट,एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भागहीनतक स्थितिका बन्धक होता है। अरति और शोकका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भागहीन स्थितिका बन्धक होता है। हास्यकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे वन्धक होता है। जो नियमसे संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है। स्त्रीवेदका कदाचित् बन्धक होता है ओर कदाचित् अबन्धक होता । यदि बन्धक होता है तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग हीन स्थितिका बन्धक होता है। पुरुषवेदका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अवन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्ट की अपेक्षा अनुत्कृष्ट एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग हीनतक स्थितिका बन्धक होता है । रतिका नियमसे बन्धक होता है जो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट, एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग हीनतक स्थितिका बन्धक होता
है। इसी प्रकार रतिके उत्कृष्ट स्थितिवन्धको अपेक्षा भी सन्निकर्ष जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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