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________________ ४८० महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे दो वि० संखेज्जगु० । अवढि० असंखेज्जगु० । पुरिसेसु इत्थिभंगो। णवरि तित्थयरं ओघं। ६६७. णवुसगे० पंचणा०-चदुदंसणा-चदुसंज० पंचंत० सव्वत्थोवा असंखज्जगुणवड्डी । असंखज्जगुणहाणी संखेज्जगु० । सेसपदा ओघं । पंचदंसणावरणादिएगुणतीसं पगदीणं ओघं। ओरालि. सव्वत्थोवा संखेज्जगुणवड्डि-हाणी दो वि० । अवत्त० असंलेज्जगु० उवरि ओधभंगो। वेउव्वियछ० ओघं णिरयगदिभंगो । सेसाणं पगदीणं ओघं । ९६८. अवगदवे. पंचणा०-चदुदंसणा०-चदुसंज०-पंचंत० सव्वत्थोना अवत्त । संखेज्जगुणवड्डी संखेज्जगु० । संखेज्जभागवड्डी संखेज्जगु० । संखेंजगुणहाणी संखेंज्जगु०। संखेज्जभागहाणी संखेज्जगु०। सादावे०-जसगि०-उच्चा० सव्वत्थोवा अवत्त । असंखेज्जगुणवड्डी संलेज्जगु० । संखज्जगुणवड्डी संखज्जग० । संखज्जभागवड्डी संखेज्जगुण । असंलेजगुणहाणी संलेजगु० । संखेज्जगुणहाणी संखेज्जगुः । संखेज्जभागहाणी संखेज्जग० । अवढि० संखेज्जग । चदुसंज० सव्वत्थोवा अवत्त । संखज्जभागवड्डी संखज्जगु० । संखेज्जभागहाणी संखज्जगु० । अवट्टि० संखजग०।। ६६६. कोधकसाए. पंचणा० चदुदंस०-चदुसंज०-पंचंत० ओघं । णवरि अवत्त. असंख्यातभागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। पुरुषवेदी जीवोंमें स्त्रीवेदी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि तीर्थकर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है।। ६६७. नपुंसकवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरंण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी असंख्यातगणवृद्धिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे असंख्यात गणहानिके बन्धक जीव संख्यातगणे हैं। शेष पदोंका भङ्ग ओघके समान है। पाँच दर्शनावरण आदि उनतीस प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। औदारिक शरीरकी संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं। इनसे अवक्तव्य पदके बन्धक जीव असंख्यात गुणे हैं। इससे आगेका भङ्ग ओघके समान है । वैक्रियिक छह का भङ्ग ओघमें कहे गये नरकगतिके समान है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। ६६८. अपगतवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तराय के अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागहानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। साता वेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे असंख्यातगुणवृद्धिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे सांख्यातभागवृद्धिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातगुणहानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे सख्यातभागहानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। चार सांज्वलनोंके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे संख्यातभागवृद्धिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागहानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। ६६६. क्रोधकषायवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण चार संज्वलन और पाँच Jair Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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