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________________ ४६८ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे णवरि अपच्चक्खाणा०४-ओरालि० अवत्त० छच्चोद । तित्थय० ओघं । ___६४७. णवुस० पंचणा०-चदुदंस०-चदुसंज०-पंचंत० असंखेंअभागवड्डि-हाणिअवढि० सव्वलो० । दोवड्डि-हाणी लो० असंखे० सव्वलो० । असंखेजगुणवड्डि-हाणी खेत्त० । अवत्त० णत्थि । पंचदंस० मिच्छ०-बारसक०-भय०-दुगुं०-ओरालि.-तेजा०क०-वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि० अवत्त० खेत० । सेसपदा णाणावरणभंगो। णवरि मिच्छ० अवत्त० बारहचो। ओरालि० अवत्त० छच्चोद्द० । सादावे० अवतः सव्वलो। सेसपदा णाणावरणभंगो। असादादिदस० ऍकवाड्डि-हाणि-अवढि०-अवत्त० सव्वलो० । बेवड्डि-हाणि लोगस्स असंखे० सञ्चलोगो वा। णवुस०-तिरिक्खग०-एइंदि० हुंडसं०. तिरिक्खाणु०-पर०-उस्सा०-थावर-सुहम-पज्जत्तापज्जत्त-पत्तेय०-साधार०-दुभग-अणादे०. णीचा० दोवड्डि-हाणी लोग० असं० सव्वलो०। सेसपदा सव्वलोगो। इत्थिवे. दोवड्डिहाणि. लोग० असं० सव्वलो० । सेसपदा सव्वलो० । चदुसंठा०-ओरालिअंगो०. छस्संघः दोवडि-हाणि• लोग० असं० छच्चोद्द० । सेसपदा सव्वलोगो० । पुरिस० समचदु०-दोविहा०-सुभग-दोसर-आदेज्ज. बेवड्डि-हाणी. बारहचोद्द० । सेसपदा जीवोंने कुछ कम छहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तीर्थङ्करका भङ्ग आंधक समान है। ६४७. नपुंसकवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षत्रके समान है। अवक्तव्यपद नहीं है। पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, औकारिकशरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारहबटे चौदह राज क्षत्रका स्पर्शन किया है। औदारिकशरीरके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीयके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है ! शेष पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । असाता आदि दसकी एक वृद्धि, एक हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, परघात उच्छ्वास, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, दुभंग, अनादेय और नीचगोत्रकी दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद की दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। चार संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और छह संहननकी दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम छहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पुरुषवेद, समचतुरस्रसंस्थान, दो विहायोगति, सभग, दो स्वर और आदेयकी दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारहबटे चौदह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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