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________________ फो ४६७ दुगु० - ओरालि० -तेजा० क० वण्ण ०४ - अगु०४ - पज्जत - पत्तय० - णिमि० अवत्त० त० । सेसपदा णाणावरणभंगो। णवरि ओरालिय० अवत्त० दिवडचोद ० सादावे० असंज्जगुणवड्डि- हा० खेत० । सेसं अट्ठचों० सव्वलो० । असादादिणव० तिण्णिवड्डि-हाणिअago १०. अवत्त ० अट्ठचोद० सव्वलो० । इत्थि० पुरिस० मणुसग दि पंचसंठा०-ओरालि०अंगो०-छस्संघ०-मणुसाणु० - आदाव-पसत्थवि० - सुभग- सुस्सर-आदें० - उच्चागो० सव्चपदा अचों | [णवर उच्चा असं ० गुणवड्डि- हाणि ० खे त०]] दोआयुग० तिष्णिजादि- आहारदूगतित्थय० त० | दोआयु० दोपदा अट्ठचों० । वेउब्वियछ० ओघं । पंचिंदि० -तसअप्पसत्थवि० दुस्सर० तसभंगो । उज्जोव० सव्वपदा अट्ठ-णवचों० । बादर० तिण्णिवड्डिहाणि-अवट्ठि० अट्ठ-तेरह० । अवत्त० खेत्त० । सुहुम-अपज्ज० साधार० अवत्त० खेत्तं । सेसपदा लो० असं० [सव्वलोग० |] जसगि० उज्जोभंगो | णवरि असंलेज्जगुणवड्डिहाणी सादभंगो । अजस० अवत्त० अणवचो । सेसपदा सादभंगो । [ एवं पुरिस० ।] ० शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । इतनी विशेषता है कि औदारिकशरीर के अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीयकी असंख्यातगुण वृद्धि और असंख्यात - गुणहानि बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान हैं। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । असाता आदि नौ प्रकृतियों की तीन वृद्धि, हा स्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, मनुष्यगति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तप, प्रशस्तविहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि उच्चगोत्रकी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । दो आयु, तीन जाति, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग क्ष ेत्र समान है। दो आयुयोंके दो पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिक छहका भङ्ग ओधके समान है । पश्चेन्द्रिय जाति, त्रस, अप्रशस्त विहायोगति और दुस्वरका भङ्ग त्रस जीवोंके समान है। उद्योतके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवडे चौदह राजू और कुछ कम नौबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । बादर प्रकृतिकी तीन वृद्धि, तीनहानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवढे चौदह राजू और कुछ कम तेरहवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्र के समान है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्ष ेत्रके समान है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । यशःकीर्तिका भङ्ग उद्योतके समान है । इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । अयशःकीर्तिके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम नौबढे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि अप्रत्याख्यानावरण चार र औदारिक शरीर के अवक्तव्य पदके बन्धक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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