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________________ ४५२ महाबंधे हिदिबंधाहियारे हाणि-अवट्टि०-अवत्त० असंखज्जा। सादावे. जसगि०-उच्चा० ओधिभंगो । दोआय०आहारदुग० मणुसिभंगो। सेसाणं असंखज्जगुणवड्डि-हाणि-अवत्त० संखज्जा । सेसपदा असंखेज्जा। ६२८. खइग० पंचणा०-चदुदंस०-चदुसंज-पुरिस-उच्चा०-पंचंत-सादादिबारसओधिभंगो । दोआयु०-आहारदुगं सव्वपदा संखेंज्जा । सेसाणं अवत्त० संखज्जा । सेसपदा असं. खेज्जा । वेदगे सादादिवारस-अपञ्चक्खाणा०४-मणुसगदिपंचग० तिण्णिवड्डि हाणि-अवढि०. अवत्त० असंखेज्जा । सेसाणं अवत्त० संखेज्जा । सेसाणं सव्वपदा असंखेज्जा । उवसम० पंचणा चदुदंस-चदुसंज-पुरिस-उच्चा० ओधिभंगो। सादावे० -जसगि० असंखज्जगुणवड्डिहाणी-संखेज्जा । सेसं असंखेज्जा । असादादिदस०-अपच्चक्खाणा०४ सव्वपदा असंखेज्जा। आहारदुग-तित्थय० सव्वपदा संखेज्जा । सेसाणं पगदीणं अवत्त० संखेंज्जा । सेसं० असंखेज्जा। सासणे मणुसायु० दोपदा संखेज्जा। सेसाणं सव्वेसि सव्वपदा असंखेज्जा । सम्मामि० सव्वेसि सव्वपदा असंखेज्जा। ____ एवं परिमाणं समत्तं। गोत्रकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव असांख्यात हैं। सातावेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। दो आयु और आहारकद्विकका भङ्ग मनुष्यनियोंके समान है। शेष प्रकृतियोकी असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। २८. क्षायिक संम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन, पुरुषवेद, उच्चगोत्र पाँच अन्तराय और साता आदिक पाँच प्रकृतियोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है । दो आयु और आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें साता आदिक बारह, अप्रत्याख्यानावरण चार और मनुष्यगति पञ्चककी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव असंख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, पुरुषवेद और उच्चगोत्रका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। सातावेदनीय और यशःकीर्तिकी असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानिके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। असातावेदनीय आदि दस और अप्रत्याख्यानावरण चारके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। आहारकद्विक और तीर्थंकर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें मनुष्यायुके दो पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इस प्रकार परिमाण समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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