SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधे परिमाणं ४५१ Q ९२६. आभि० - सुद०-ओधि० पंचणा० चदुदंस ० चदुसंज० - पुरिस ०-उच्चा०- - पंचंत० तिण्णिवड्डि-हाणि-अवट्टि० असंखेज्जा । असंखेज्जगुणवड्डि- हाणि अवत्त ० के ० १ संखेजा । णिद्दा-पचला-पच्चक्खाणा०४-भय-दु० - देवर्गादि - पंचिंदि० - वेउब्धि ० - तेजा ० क ०-समचदु०वेउव्वि ० अंगो०- ० - वण्ण ०४ - देवाणु ० - अगु०४ - पसत्थ० -तस०४ - सुभग- सुस्सर - आदें ०णिमि० - तित्थय० तिण्णिवड्डि-हाणि अवडि० असंखज्जा । अवत्त० संखेज्जा | सादावे०जस० तिण्णिवड्डि-हाणि-अवट्ठि ० -अवत्त० असंखेज्जा । असंखेज्जगुणवड्डि-हाणी संखेजा । असादा ० - अपच्चक्खाणा ०४ - चदुणोक० मणुसग ० - ओरालि ०-ओरालि० अंगो० वज्जरिस०मसाणु ० - थिराथिर - सुभासुभ-अजस० तिण्णि-वडिहाणि अवडि०६० - अवत्त० असंखेज्जा । मणुसा० दोपदा आहारदुगं सव्वपदा संखेज्जा । देवायु० दोपदा असंखेज्जा । एवं अधिदंस० - सम्मादि० । संजदासंजदे तित्थय० सव्वपदा संखेज्जा | सेसा असंखेजा । ६२७. ऊ पच्चक्खाणा ०४ - देवगदि - तित्थय० अवत्त० संखेज्जा | सेसा असंखेज्जा | मणुसायु ० दोपदा० असंखेज्जा । आहारदुगं ओघं । सेसाणं सव्वपदा असं1 खज्जा । एवं पम्मा वि । सुक्काए वि असादवे० - थीणगिद्धि ०३ - मिच्छ० - अट्ठक० - छण्णोक० - छस्संठा०-छस्संघ ० दोविहा० - थिरादिपंचयुगल - अजस०-० -णीचा० तिष्णिवड्डि २६. आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनवरण, चार संज्वलन, पुरुषवेद, उपनगोत्र और पाँच अन्तरायकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यात हैं । असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। निद्रा, प्रचला, प्रत्याख्यानावरण चार, भय, जुगुप्सा, देवगति, पञ्चन्द्रिय जाति, वैक्रियिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्तविहायोगति, त्रसचतुष्क, सुभग, सुवर, देय, निर्माण और तीर्थङ्कर प्रकृति की तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यात हैं । अवक्तव्य पदके बन्धक जीव संख्यात हैं। सातावेदनीय और यशःकीर्तिकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव असंख्यात हैं । संख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिके बन्धक जीव संख्यात हैं । असातावेदनीय, अप्रत्याख्यानावरण चार, चार नोकषाय, मनुष्यगति, श्रदारिकशरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रवृषभनाराच संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ और अयशःकीर्तिकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित, और वक्तव्य पदके बन्धक जीव असंख्यात हैं । मनुष्यायुके दो पदों और आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं । देवायुके दो पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं । इसी प्रकार अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । संयतासंयत जीवोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं । ६२७. पीत लेश्यावाले जीवोंमें प्रत्याख्यानावरण चार, देवगति और तीर्थङ्कर प्रकृति के अवक्तव्य पदके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं । मनुष्यायुके दोनों ही पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार पालेश्यावाले जीवोंमें भी जानना चाहिये । शुक्लेश्यावाले जीवों में असातावेदनीय, स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व आठ कषाय, छह नो कषाय, छह संस्थान, छह संहनन, दो विहायोगति, स्थिर आदि पाँच युगल, छायश: कीर्ति, और नीच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy