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________________ महाबंधे डिदिबंधाहियारे सेसाणं णिरयादि याव सण्णि त्ति असंखेंज-संखेजरासीणं आयुगवजाणं अवढि० णियमा अस्थि । सेसपदा भयणिज्जा । आयु. सव्वपदा भयणिज्जा । एवं भंगविचयं समत्तं भागाभागो ६१६. भागाभागाणु० दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा० चदुदंस०-चदुसंज०पंचंत. असंखेंजभागवड्डि-हाणिबंधगा सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? असखेंज भागो। तिण्णिवड्डि-हाणि-अवत्त०बंध. सव्वजी० अणंतभा० । अवढि० सव्वजी० केव० १ असंखे०भा० । पंचदंसणा०-मिच्छ०-बारसक०-भय-दु०-ओरालि०-तेजइगादिणव० तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि०-अवत्त० णाणावरणभंगो। सादावे० पुरिस०-जसगि०-उच्चा० असंखजभागवड्डि-हाणि-अवत्त० सव्वजी० केव० १ असंखेजदिभा० । तिण्णिवड्डि-हाणी० सव्व० केव० १ अणंतभाग० । अवढि० सव्व० केव० १ असंखेजभा० । असादा०-इत्थि०. णवूस०-चदुणोक०-दोगदि-पंचजादि०-छस्संठा०-ओरालि अंगो०-छस्संघ० दोआणु-पर०. उस्सा०-अदाउञ्जो०-दोविहा०-तसथावरालिणवयुगल-अजस०-णीचा० सादभंगो। चदु वनस्पतिकायिक, प्रत्येकशरीर और इनके अपर्याप्त जीवोंमें सब. पदवाले जीव नियमसे हैं। नरकगतिसे लेकर संज्ञीतक शेष सब असंख्यात और संख्यात राशिवाली मार्गणाओंमें आयुकर्मको छोड़कर अवस्थित पदवाले जीव नियमसे हैं। शेष पदवाले जीव भजनीय हैं। आयुकर्मके सब पदवाले जीव भजनीय हैं। इस प्रकार भङ्गविचय समाप्त हुआ। भागाभाग ६१६. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। तीन वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सब जीवोंके अनन्तवें भाग प्रमाण हैं। अवस्थितपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर और तैजसशरीर आदि नौ प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका भङ्ग ज्ञानाधरणके समान है । सातावेदनीय, पुरुषवेद, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। तीन वृद्धि और तीन हानियोंके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? अनन्तवें भाग प्रमाण हैं। अवस्थितपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं । असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। असातावेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, चार नोकषाय, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस और स्थावर आदि नौ युगल, अयशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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