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________________ बंधे णाणाजीवेहिभंगविचओ णाणाजीवेहि भंगविचओ १४. णाणाजीवेहिभंगविचयाणुगमेण दुवि० - ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा०णवदंसणा०-मिच्छ० - सोलसक० - भय० - दुगुं०-ओरालि० तेजा० क० वण्ण०४ - अगु० -उप०णिमि०-पंचंत० असंर्खेज्जभागवड्डि हाणि अवडि० बं० णियमा अत्थि । सेसाणि पदाणि भणिजाणि । तिणिआयु० पदा० भयणिञ्जाणि । वेउन्वियछ० - आहार दुग- तित्थय ० अवडि० णियमा अत्थि । सेसपदाणि भयणिजाणि । सेसाणं असंखेज भागवड्डि-हाणिअवट्ठि●० - अवत्त० णियमा अत्थि । सेसपदाणि भयणिञ्जाणि । एवं ओघभंगो कायजोगिओरालि० - ओरालि०मि० कम्मइ० णवुंस० कोधादि ० ४ -‍ -मदि० - सुद० असंज ० - अचक्खुदं०तिष्णिले ० - भवसि ० - अब्भवसि० - मिच्छा० आहार० - अणाहारग त्ति । णवरि ओरालियमि०कम्मइ० - अणाहार० मिच्छ० अवत्त० देवग दिपंचग० अवडि० भयणिज्जा | सेसाणं अवट्ठि ० अवत्त० णियमा अत्थि । ९१५. तिरिक्खे ओघं । मणुसअपजत्त० - ० - वेउब्वियमि०- ० - आहार० - आहारमि०अवगदवे० - सुहुमसंप०० - उवसम० - सासण० - सम्मामि० सव्वपदा भयणिज्जा । एइंदियवणष्कदि-नियोद- बादरपजत्तापञ्ज ०- पुढवि० - आउ० तेउ० - वाउ ० - सव्वसुहुमबा दर पुढ विआउ० तेउ०- वाउ०- बादरवणफदिपत्तेय० तेसिं अपज० सव्वपदा णियमा अत्थि । O ४४५ नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय ६१४. नाना जीवों की अपेक्षा भङ्गविचयानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिध्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक शरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। तीन आयुओं के पद भजनीय हैं। वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थकर प्रकृति अवस्थित पदके बन्धक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। शेष प्रकृतियोंकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव नियमसे हैं । शेष पद भजनीय हैं। इसी प्रकार के समान काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिध्यादृष्टि, आहारक और अनाहारक जीवों के जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में मिध्यात्वके अवक्तव्य पदके और देवगति पञ्चकके अवस्थित पदके बन्धक जीव भजनीय हैं। शेष प्रकृतियों के अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव नियमसे हैं । ६१५. तिर्यञ्चोंमें ओघ के समान भङ्ग है । मनुष्य अपर्याप्त, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारक काययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में सब पद भजनीय हैं। एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक, निगोद और इनके बादर पर्याप्त और अपर्याप्त, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अभिकायिक, वायुकायिक, सबसूक्ष्म, बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर वायुकायिक, बादर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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