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________________ भुजगारबंधे अप्पा बहु आणुगमो श्रसंखे | सेसाणं पंचिंदियभंगो । १०- भय० ८२२. आभि० सुद० - ओधि० पंचणा० छदंसणा ० - बारसक० - पुरिस ०. दोगदि - पंचिंदि ० - चत्तारिसरीर-समचदु० - दोअंगो० वज्जरि० - वण्ण ०४ - दोआणु ० - अगु०४ पसत्थ० -तस०४- सुभग-सुस्सर-आदें ० - णिमि ० - तित्थय ० उच्चा० पंचंत० सम्वत्थो० अवत्त० । ज० - अप्पद० असंखे० । अवट्टि० असंखै० । सादादिबारस० मणुसभंगो । मणुसायु०देवायुग- आहारदुगं ओघं । ३६१ ८२३. मणपज्जव ० सव्वकम्माणं सव्वत्थो ० अवत्त० । दोपदा० संखेज्ज० । अवट्टि • संखेज्ज० | दो आयु० मणुसि० भंगो । एवं संजद० । ० ० ८२४. सामाह • छेदोव० धुविगाणं सव्वत्थो० भुज० अप्पद० । अवट्ठि० संखेज ० । सेसाणं मणपञ्जवभंगो । परिहार० [ आहार - ] कायजोगिभंगो । णवरि आहारदुगं अत्थि । सुहुमसंप० सव्वाणं सव्वत्थो ० ज ० । अप्प० संखज्ज० । अवट्ठि ० संखज्ज० । संजदासंजद० धुविगाणं सव्वत्थो भुज० अप्पद० । अवट्टि • असंखेज्ज० । सेसाणं ओधिभंगो । rai तित्य • मणुसि० भंगो । असंजद० सव्वपगदीणं ओघं । ० - 02-01 प्रकृतियोंका भङ्ग पचेन्द्रियोंके समान है । ८२२. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, और अवधिज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, दो गति, पञ्चेन्द्रिय जाति, चार शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, वज्रऋषभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, दो आनुपूर्वी, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थंकर, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। साता आदि बारह प्रकृतियोंका भङ्ग मनुष्योंके समान है। मनुष्यायु, देवायु और आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है। Jain Education International ८२३. मन:पर्ययज्ञानी जीवोंमें सब कमके वक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे दो पदोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । दो श्रायुओंका भङ्ग मनुष्यनियोंके समान है। इसी प्रकार संयत जीवोंके जानना चाहिये । ८२४. सामायिकसंयत और छेदोपस्थापना संयत जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग मन:पर्ययज्ञानी जीवोंके समान है। परिहारविशुद्धि संयत जीवोंका भङ्ग आहारक काययोगी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि इनमें आहारकद्विक है। सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे अल्पतर पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । संयतासंयत जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि तीर्थंकर प्रकृतिका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है। असंयतों में सब प्रकृतियों का भङ्ग श्रोघ के समान है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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