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________________ ३६८ महाबंधे हिदिबंधाहियारे पदा खेत्तमंगो । एवमेदाणं याव आहारग ति। [तिरिक्खायु० दोपदा सव्वलो०।] मणुसायु० दोपदा अट्ठचौद्द० सबलोगो० । णिरयगदि-देवगदि-दोआणुपु० तिण्णि प० छच्चोंद्द० । अवत्त० खेत्तभंगो। ओरालिय० तिण्णिपदा सव्वलोगो । अवत्त० बारहचाँद्दस० । वेउबि०-वेउन्चि० अंगो० तिण्णिपदा बारहचौदस । अवत्त० खेतभंगो । तित्थय. तिण्णिप० अट्ठचों । अवत्त० खेत्त । सेसाणं कम्माणं सव्वपदा सव्वलोगो। ७७६. णिरएसु धुविगाणं तिण्णिपदा सादादीणं बारसण्णं चत्तारिपदा० छच्चोंदस०। दोआयु०-मणुसग०-मणुसाणु तित्थय०-उच्चा० सव्वप० खेत्तभंगो । सेसाणं तिण्णिप० छच्चोंद० । अवत्त० खेत्तभंगो। एवं सव्वणिरयाणं अप्पप्पणो फोसणं कादच्वं । णवरि मिच्छ० अवत्त० पंचचोद०।। ____७७७. तिरिक्खेसु धुविगाणं तिण्णिपदा० सबलोगो। थीणगिद्धि०३-मिच्छ.. अट्ठक०-ओरालि० तिण्णिप० सव्वलो० । अवत्त० लो० असंखेज० । णवरि मिच्छ० अवत्त० सत्तचों । सेसाणं ओघे० । जानना चाहिए। तिर्यश्च आयुके दो पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्य आयुके दो पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकगति, देवगति और दो आनुपूर्वी के तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। औदारिक शरीरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिक शरीर और वैक्रियिक आंगोपांगके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तीर्थंकर प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ___ ७७६. नारकियोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने और साता आदि बारह प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, तीर्थंकर प्रकृति और उच्चगोत्रके सब प्रदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छहबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार सब नारकियोंके अपना-अपना स्पर्शन करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछकम पाँचवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है।। ७७७. तिर्यश्चोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, आठ कषाय और औदारिक शरीरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके श्रवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन ओघके समान है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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