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________________ भुजगारबंधे फोसणाणुगमो ३६७ चत्तारि पदा सव्वलो। णस०-तिरिक्खग०-एइंदि० हुंडसं०-तिरिक्खाणु०-पर-उस्सा०थावर-सुहुम-पजत्तापज्जत्त-साधार०-दूभग०-अणादें०-अजस०-णीचा तिण्णिप०सव्वलो। अवत्त० लो० असंखें । सेसाणं सव्वपदा लोग० असंखेजः। एवं बादरवण-णियोदपजत्तापज० । णवरि वाऊणं जम्हि लोगस्स असंखज० तम्हि लोगस्स संखज० कादव्यो। बादरवणप्फदिपत्तेय० तस्सेव अपञ्ज० बादरपुढवि०अपजत्तभंगो। सेसाणं णिरयादि याव सण्णि त्ति संखेंज-असंखजरासीणं सव्वभंगो लोग० असंखें । एवं खेत्तं समत्तं । फोसणाणुगमो ७७५. फोसणाणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा-छदसणा०-अट्ठक.. भय-दु०-तेजइगादिणव-पंचंत० भुज०-अप्प०अवढि०बंधगेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलो० । अवत्त० खेत्तं । थीणगिद्धि०३-अणंताणुबंधि०४ तिण्णिपदा णाणावरणभंगो। अवत्त० अट्ठों । मिच्छ० तिण्णिपदा णाणा भंगो। अवत्त० अट्ठ-बारह० । अपचक्खाणा०४ तिण्णपदा णाणाभंगो । अवत्त० छच्चोंद० । णिरयु देवायु०-आहारदुगं सव्वजीवोंका क्षेत्र सब लोक है। सातावेदनीय आदि दस प्रवृतियोंके चार पदों के बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रिय जाति, हुण्ड संस्थान, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, साधारण, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीति और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार बादर वनस्पतिकायिक, बादर निगोद और इनके पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि वायुकायिक जीवोंके, जहाँ लोकका असंख्यातवाँ भागप्रमाण क्षेत्र कहा है, वहाँ लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र कहना चाहिए। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर और उनके अपर्याप्त जीवोंमें बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त जीवोंके समान भङ्ग है। शेष नरकगतिसे लेकर संज्ञी मार्गणातक संख्यात और असंख्यात संख्यावाली राशियोंमें सब पदोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इस प्रकार क्षेत्र समाप्त हुआ। __ स्पर्शानानुगम ७७५. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कपाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर आदि नव और पाँच अन्तरायके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदका भंग क्षेत्रके समान है। स्त्यानगृद्धि तीन और अनन्तानुबन्धी चारके तीन पदों के बन्धक जीवोंका भंग ज्ञानावरण के समान है। अवक्तव्य पदके वन्धक जीवोंने कुछ कम पाठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका भंग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम बारहवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अप्रत्याख्यानावरण चारके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका भंग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कल कम छहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकायु, देवायु और आहारक द्विकके सब पदोंके बन्धक जीवोंका म्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार आहारक मार्गणा तक इन प्रकृतियोंके सब पदोंका स्पर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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