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________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो ३५७ अप्पसत्थ० दूर्भाग- दुस्सर-अणादें ० णकुंसंगभंगो । पुरिस०- समचदु० - पसत्थ० - सुभग-सुस्सरआदे० तिण्णि पदा सादभंगो । अवत्त० जह० तो, उक० तेत्तीसं सा० देसू० । ओरालि० - ओरालि ० अंगो० - वज्जरिस० तिण्णि पदा ओघं । अवत्त० णवु सगभंगो । सेसं मदिभंगो । चक्खु ० तसपज्जतभंगो। अचक्खुदं० ओघं । O ७५६. किण्ण - णील- काउलेस्सा० धुविगाणं दो पदा जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्ठि ० जह० एग०, उक्क० चत्तारि सम० | थीणगिद्धि ०३ - मिच्छ० - अनंताणुबंधि०४इत्थि - ण स ० - दोगदि - पंचसंठा - पंच संघ ० - दोआणु ० - उज्जो ० - अप्पसत्थ ०० दूभग दुस्सर अणादें - णीचुच्चागो० तिण्णि प० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क ० तेत्तीसं सा० सत्तारस० सत्त साग० देसू० । पुरिस० समचदु ० वज्जरिसभ० पसत्थ० - सुभग- सुस्सरआदे० तिणि पदा सादभंगो । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तैंतीस ० सत्तारस० सत्तसाग० सू० । णिरय देवायु० दोपदा० णत्थि अंतरं । तिरिक्ख- मणुसायु० णिरयगदिभंगो । णिरय - देवदि- पंचजादि-ओरालि ०-ओरालि ०अंगो० - दोआणु ० - पर० - उस्सा ० - तस - थावरचदुयुगलं तिष्णि पदा० जह० एग०, उक्क० अंतो ० । अवत्त० णत्थि अंतरं । वेउव्वि०वेडन्वि ० अंगो० तिण्णि पदा जह० एग०, उक० बावीसं सत्तारस० सत्त साग० गति, दुर्भाग, दुस्वर और अनादेयका भङ्ग नपुंसकवेदके समान है । पुरुषवेद, समचतुरस्र संस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयके तीन पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। दा रिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और वज्रऋषभनाराचसंहननके तीन पदोंका भङ्ग ओघके समान है । अवक्तव्य पदका भङ्ग नपुंसकवेदके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है । चतुदर्शनवाले जीवों में सपर्याप्तकों के समान भङ्ग है । श्रचतुःदर्शनवाले जीवोंमें श्रोघ के समान भङ्ग है । ७५६. कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावाले जीवों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिध्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, दो गति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, दो आनुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भाग दुस्वर, अनादेय, नीचगोत्र और उच्चगोत्रके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर क्रमसे कुछ कम तेतीस सागर, कुछ कम सत्तरह सागर और कुछ कम सात सागर है । पुरुषवेद समचतुरस्र संस्थान, वज्रऋषभनाराचसंहनन, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयके तीन पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर क्रमसे कुछ कम तेतीस सागर, कुछ कम सत्तरह सागर और कुछ कम सात सागर है। नरकायु और देवायुके दो पदोंका अन्तर काल नहीं है । तिर्यवायु और मनुष्यायुका भङ्ग नरकगतिके समान है। नरकगति, देवगति, पाँच जाति, औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, दो आनुपूर्वी, परघात, उछूवास, त्रस स्थावर बार युगल के तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका अन्तर काल नहीं है। वैक्रियिक शरीर और वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर क्रमसे साधिक बाईस सागर, साधिक सत्तरह सागर और साधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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