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________________ રૂપર महाबंध द्विदिवेधाहियारे ७३४. णिरएसु धुविगाणं भुज० अप्प० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्टि • जह० एग०, उक्क० वेसम० । पुरिस० समचदु० वज्जरिस० पसत्थ०- सुभग-सुस्सर-आदेज्ज० तिष्णिपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं साग० सू० | धुवभंगो तित्थयरं । णवरि अवत्तव्वं णत्थि अंतरं । सेसाणं पि पगदीणं तिण्णि पदा० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं साग० दे० | दोआयु० दो पदा० जह० अंतो०, उक्क० छम्मासं देणं । एवं सत्तमाए । सेसाणं पि तं चैव पुढवि० । वरि मणुसग०- मणुसाणु० - उच्चा० पुरिसवेदेण समं कादव्वं । 1 ७३५. तिरिक्खेसु धुविगाणं भुज० अप्प० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवडि० जह० एग०, उक्क० चत्तारिसम० । श्रीणगिद्वि०३ - मिच्छ० अनंताणुबंधि०४ तिष्णिपदा० जह० एग०, उक्क० तिष्णिपलिदो० दे० । अवत्तव्वं श्रघं । अपचक्खाणा ०४तिष्णिपदा० जह० एग०, उक्क ० पुव्व कोडी ० सू० | अवत्त० ओघं । इत्थवे तिष्णिपदा० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तिष्णिपलिदो० देसू० । नपुंस०तिरिक्खग ० चदुजादि-ओरालि०- पंचसंठा०-ओरालि० अंगो० छस्संघ० - तिरिक्खाणु० -आदाउज्जो० - अप्पसत्थ० थावरादि ०४ - दूर्भाग- दुस्सर-अणादें ०-णीचा० तिष्णिपदा० जह० एग०, ७३४. नारकियोंम ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंक भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । पुरुषवेद, समचतुरस्रसंस्थान, वर्षभनाराचसंहनन, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयक तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीस सागर है। तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियों के समान है। इतनी विशेषता है कि इसके अवक्तव्य पदका अन्तर नहीं है । शेष प्रकृतियोंके भी तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय हैं, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। दो आयुओं के दो पदोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवी में जानना चाहिए। शेष पृथिवियों में भी यही भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि इनमें मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके पदोंका अन्तर पुरुषवेदके साथ कहना चाहिए। ७३५. तिर्यञ्चमं ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य हैं । अवक्तव्य पदका भङ्ग ओघ के समान हैं । अप्रत्याख्यानावरण चारके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है । अवक्तव्य पदका अन्तर के समान है । स्त्रीवेदके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय हैं, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सबका कुछ कम तीन पल्य है । नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगति, चार जाति, औदारिक शरीर, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर आदि चार, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीच गोत्रके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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