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________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमा ३४१ तिरिक्खग०-तिरिक्खाणु० तिण्णिपदा० जह० एग०, उक्क० तेवद्विसागरोवमसद० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० असंखेजा लोगा। मणुसगदितिगं तिण्णिप० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० असंखजा लोगा। चदुजादि-आदाव-थावरादि०४ तिण्णिपदा० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पंचासीदिसागरोवमसदं। पंचिंदि०. पर०-उ०-तस०४ तिण्णिप० जह० एग०, उक० अंतो० । अवत्त० जह० अंतो०, उक० पंचासीदिसाग०सदं । ओरालि० तिण्णिप० जह० एग०, उक्क० तिणिपलिदो० सादि। अवत्त० जह• अंतो०, उक्क० अणंतका० । आहारदुगं० तिष्णिप० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो, उक्क० अद्धपोग्गल | समचदु०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर-आदज० तिण्णिप० जह० एग०, उक० अंतो० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० बेछावहि. सादि० तिण्णि पलिदो० देसू० । ओरालि अंगो०-वज्जरिस० तिण्णिप० जह० एग०, उक्क० तिण्णि पलिदो० सादि० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं साग० सादिरे । उज्जो० तिण्णिपदा० तिरिक्खगदिभंगो। अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तेवद्विसागरोवमसदं । णीचागो तिष्णिपद० णqसगभंगो । अवत्त० जह० उक्क तिरिक्खगदिभंगो। तित्थय० तिण्णिप० जह• एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० अंतो, उक्क० तेत्तीसं साग० सादि०। जघन्य अन्तर अन्तमुहूत हे और उत्कृष्ट अन्तर सवका अनन्त काल है । तिर्यश्चगति और तियश्चगत्यानुपूर्वीके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एक सौ त्रेसठ सागर है। अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उस्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक है। मनुष्यगतित्रिकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । चार जाति, आतप और स्थावर आदि चारके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्महतें है और उत्कट अन्तर एक सौ पचासी सागर है। पञ्चेन्द्रिय जाति, परघात, उच्छास और त्रसचतुष्कके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्महर्त है और उत्कृष्ट अन्तर एक सौ पचासी सागर है । औदारिक शरीरके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य है। अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्महर्ट है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। आहारक द्विकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूते हैं और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्समुहूर्त है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो छयासठ सागर और कुछ कम तीन पल्य है। औदारिक आङ्गोपाङ्ग और वर्षभनाराच संहननके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक ततीस सागर है। उद्योतके तीन पदोंका अन्तर तिर्यश्चगतिके समान है। अवक्तव्य पढ़का जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष् अन्तर एक सौ बेसठ सागर है। नीचगोत्रके तीन पदोंका भङ्ग नपंसकवेदक समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर तिर्यश्चगतिक समान है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके तीन पदोंका जवन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्नर साधिक तेतीस सागर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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