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________________ परत्थाणट्टिदिपाबहुगपरूवणा ३२७ सेसं ओघं । माणे तं चैव । णवरि तिण्णि संज० । मायाए दोणि संज० । सेसं तं चैव । लोभे पंचणा० - चदुदंस० पंचंत० अत्थि भुज० - अप्पद ० अवट्ठि० | सेसं ओघं । ७००, मदि०- सुद० पंचणा० - णवदंसणा० - सोलसक० भय- दुर्गु० -तेजा० क० वण्ण० ४- अगु० - उप० - णिमि० - पंचंत० अत्थि भुज० - अप्पद ० अवडि० । सेसं ओघं । एस भंगो विभंगे । एवं चैव अन्भवसि ० - मिच्छादि ० - असणि ति । णवरि मिच्छत्त० अवत्तव्यं णत्थि । ७०१. आभि० सुद० - ओधि० - मणपजव ०- -संजद - ओधिदं ० - सुक्कले ० सम्मादि० खइग०-उवसम - ओघं । सामाइ० छेदो० पंचणा० चदुदंस० - लोभसंज-उच्चा० - पंचत० अस्थि भुज ० - अप्पद ० - अवट्टि० । सेसं ओघं । परिहार • आहारकायजोगिभंगो । संजदासंजद ० पंचणा० - छदंसणा ० - अदुकसा० - पुरिसवे ०-भय-दुर्गु० -देव गदि पंचिंदि ० ति ण्णिसरीर-समचदु० - वेडव्त्रियअंगो० - वण्ण ०४ - देवाणु ० - अगु०४ - पसत्थ० तस०४ - मुभग - सुस्सर-आदेंज० - णिमि० उच्चा० पंचंत० अस्थि भुज० - अप्पद० अवद्वि० । सेसं ओघं । 1 1 ७०२. असंजदे० पंचणा०-छदंसणा ०-बार सक०-भय-दुगुं० तेजा० क० वण ०४अगु० - उप० - णिमि० पंचंत० अत्थि भुज० अप्पद० - अवट्टि ० । सेस ओघं । तिण्णि लेस्साणं पाँच अन्तराय के भुजगार बन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेष भङ्ग श्रवके समान हैं। मानकषायवाले जीवोंमें वही भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि यहाँ तीन संज्वलन कहना चाहिये । मायामें दो संज्वलन कहने चाहिये । शेष भङ्ग उसी प्रकार हैं । लोभकपायवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायके भुजगार बन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेष भङ्ग ओघ के समान हैं । ७००. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सोलह कपाय, भय, जुगुप्सा, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तराय भुजगार बन्धक जीव हैं, अल्पतर बन्धक जीव हैं और अवस्थित बन्धक जीव हैं। शेष भङ्ग ओघके समान हैं । यही भङ्ग विभङ्गज्ञानी जीवोंमें जानना चाहिये । तथा इसी प्रकार भव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनमें मिध्यात्वका अवक्तव्य पद नहीं है । ७०१. आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी मन:पर्ययज्ञानी, संयत, अवधि दर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि और उपशम सम्यग्दृष्टि जीवों में ओघ के समान भङ्ग है। सामायिक संयत और छेदोपस्थापना संगत जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, लोभ संज्वलन, उच्च गोत्र और पाँच अन्तरायके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थित वन्धक जीव हैं। शेष भङ्ग ओघ के समान हैं। परिहारविशुद्धि संगत जीवों में आहारक काययोगी जीवोंके समान भङ्ग हैं। संयतासंयत जीवों में पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनवरण, आठ कपाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, देवगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, तीनशरीर, समचतुरस्र संस्थान, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, वर्ण चतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके भुजगारबन्धक जीव हैं, 'अल्पतर बन्धक जीव हैं और अवस्थितवन्धक जीव हैं। शेष भङ्ग ओके समान है । ७०२. असंयत जीवों में पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण बारह कपाय, भय, जुगुप्सा, तैजस शरीर, कार्मणशरीर, वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु उपघात, निर्माण और पाँच अन्तराय भुजगारबन्धक जीव हैं. अल्पतर बन्धक जीव हैं और अवस्थित बन्धक जीव हैं। शेप भङ्ग ओघ के समान हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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