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________________ महाबंध द्विदिबंधाहिया रे । ६६७. ओरालियमिस्से पंचणा०-णवदंसणा० सोलसक०-भय-दुगुं० - देवर्गादि-ओरालि ०. उन्त्रिय० - तेजा० क० वेउच्चि ०अंगो० - वण्ण०४ - देवाणुपु० - अगु० - उप० - णिमि०वित्थय० पंचत० अस्थि भुज० - अप्पद० अवडि० । सेसाणं ओवं । वेउब्विय० देवोघं । raft त्रिस्स अवत्तव्वं अस्थि । वेउव्वियमि० पंचणा० णवदंसणा० - सोलसक० -भयदुगुं०-ओरालि०-तेजा० क० वण्ण ०४ - अगु०४ - बादर - पजत्त - पत्तेय० - णिमि० - तित्थय ०पंचत० अस्थि भुज० - अप्पद ० अवडि० । सेसाणं ओघं । आहार० - आहारमिस्से धुविगाणं अत्थि भुज- अप्पद० - अवट्टि । सेसं ओघं । कम्मइगे० अणाहारगे० पंचणा०-णवदंसणा ०सोलसक य - दुर्गु० - देवर्गादि-ओरालि ० वेउब्विय ० तेजा ० क ० - वेउच्चि ० अंगो० वण्ण०४ देवाणु० - अगु० - उप० णिमि० - तित्थय० पंचंत० अस्थि भुज० अप्पद० अवट्ठि० । सेसं ओघं । ६६८. इत्थि - पुरिस० णवुंस० पंचणा० चदुदंस ० चदुसंज० पंचत० अत्थि अप्पद ० - अव०ि । सेसं ओघं । अवगद० सव्वाणं अस्थि भुज० - अप्पद ० - अवट्ठि ०-अव्वतव्वं । एवं सुहुमसंप० । णवरि अवत्तव्यं णत्थि । ol 1०-भय ६६६. कोधे पंचणा० - चदुदंस ० चदुसंज० - पंचंत • अस्थि भुज० - अप्पद ० - अवट्ठि ० । ३२६ ६६७. श्रदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सोलह कपाय, भय, जुगुप्सा, देवगति, औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तराय इनके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंका मन के समान है। वैक्रियिककायोगी जीवोंका भङ्ग सामान्य देवोंके समान हैं । इतनी विशेपता है कि इनमें तीर्थंङ्कर प्रकृतिका अवक्तव्य पद है । वैक्रियिकमिश्र काय योगी जीवों में पाँच ज्ञानाचरण, नौ दर्शनावरण, सोलहकपाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, चारवर्ण, अगुरलघु चतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तराय इनके भुजगारबन्धक जीव है, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियों का भङ्ग ओके समान है । आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंक भुजगरबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेप प्रकृतियोंका भङ्ग के समान हैं । कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावण, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, देवगति, औदारिक शरीर, वैक्रियिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तराय इनके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थित बन्धक जीव हैं शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघ के समान हैं । 1 ६६८. स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तराय के भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेष भङ्ग ओघ के समान है। अपगतवेदी जीवों में सब प्रकृतियोंके भुजगार बन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं, अवस्थितबन्धक जीव हैं और अवक्तव्यवन्धक जीव हैं। इसी प्रकार सूक्ष्म सीपरायसंयत जीवों में जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनमें वक्तव्य पद नहीं है । ६६६. कोयकपायवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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