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________________ ३१. महाबंधे द्विदिवंधाहियारे यहि विस० । मिच्छ जहि० विसे ० । यहि विसे । देवगदि-वेउन्वि० ज०हि. संखेज । यहि विसे । णिरयग० ज०हि. विसे । यहि. विसे । आहार०ज०हि० संखेंज० : यहि विसे । ६६६. पंचमण-तिएिणवचि. सव्वत्थोवा तिरिक्ख-मणुसायु० जाहि० । यट्टि. विसे० । लोभसंज० जटि संखेंज । यहि. विसे । पंचणा०-चदुदंसणा-पंचंत० ज०हि० संखेंज । यहि. विस० । जस०-उच्चा. ज.हि. संग्वेज । यहि विसे० । सादा. ज.हि. विसे । यहि० विसे० । मायासंज. जहि० संखेंज । यहि विसे० । माणसंज० ज०हि. विसे० । यहि. विसे० । कोधसंज. ज.हिविसे० । यहि० विसे० । पुरिस० जहि० संखेज्ज० । यहि विसे० । दो आयु० ज०ट्टि० संखेज्ज०। यहि विसे० । हस्स-रदि-भय-दुगु जहि असंखेज । यहि विसे० । देवगदि-चेउवि०-आहार-तेजा-क० ज.हि. संखेज । यहि विसे । णिदा-पचला. जहि० संखेन्ज । यट्टि विसे० । अरदि-सोग-अजस० ज०ट्टि संखेज । यट्टि ० विसे । असादा० ज०हि विसे । वन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे देवगति और वैक्रियिक शरीरका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नरकगतिका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आहारक शरीरका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ६६९. पाँच मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवों में तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे लोभ संज्व लनका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यश-कीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे माया संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मानसंज्वलनका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । इससे पत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे दो आयुओंका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे हास्य, रति, भय और जुगुप्साका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे देवगति, वैक्रियिक शरीर, याहारकशरीर, तैजसशरीर और कार्मणशरीरका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे निद्रा और प्रचलाका जघन्य स्थितिवन्ध संख्तातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे रति, शोक और अयशःकीर्तिका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे असातावेदनीयका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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