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________________ परत्थाणट्ठिदिअप्पाबहुगपरूवणा २९३ ६३८. परत्थाणहिदिअप्पाबहुगं दुविध---जहएणयं उक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं । दुवि०--ओघे० आदे० । अोघे० सव्वत्थोवा तिरिक्ख-मणुसायूणं उक्कस्सो हिदिवंधो । यहिदिबंधो विसेसाधियो । णिरय-देवायणं उक्कस्सहि० संखेंजः । यहि. विसे । अाहार० उक्क टि संखेंज । यहि विसे । पुरिस -हस्स-रदि-देवगदि०जस०--उच्चा० उक्क हिदि० संखेंज.। यहि० विसे० । सादा०--इत्थि०--मणुसग० उ०हि. विसे० । यहि विसे० । णवुस० अरदि०--सोग--भय-दुगु-णिरयगदि-- तिरिक्वगदि-चदुसरीर-अजस---णीचा. उक्क.हि. विसे० । यट्टि विसे० । पंचणा-णवदंसणा०-असादा-पंचंत० उ.टि. विसे । यहि विसे० । सोलसक० उ०हि. विसे । यहि विसे । मिच्छ० उ.हि. विसे । यहि विसे । ६३६. णेरइएसु सव्वत्थोवा दोआयु० उ०हि० । यहि. विसे । पुरिस०-- हस्स--रदि--जस--उच्चा० उ०हि. असंखेंज०। यट्टि विसे । सादावे०--इस्थि०मणुसगदि० उ०हि. विसे० । यट्टि विसे० । गर्बुस०-अरदि-सोग--भय-दुगु-- तिरिक्खगदि-तिरिणसरीर-अजसणीचा० उ०हि विसे । यहि विसे० । उवरि अोघं । एवं याव छहि त्ति । ६३८. परस्थान स्थिति अल्पबहुत्व दो प्रकार का है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश। ओघसे तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नरकायु और देवायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आहारकद्विकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेद, हास्य, रति, देवगति, यशकीर्ति और •उच्चगोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीय, स्त्रीवेद और मनुष्यगतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नरकगति, तिर्यञ्चगति, चार शरीर, अयशःकीर्ति और नीचगोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सोलह कषायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ६३६. नारकियों में दो अायुओंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेद, हास्य, रति, यश-कीर्ति और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीय, स्त्रीवेद और मनुष्यगतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यञ्चगति, तीन शरीर, अयश कीर्ति और नीचगोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आगेका अल्पबहुत्व ओघके समान है। इसी प्रकार छठवीं पृथिवी तक जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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