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________________ २८८ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे ६२७. पंचमण-तिएिणवचि० सव्वत्थोवा चदुदंस० जहि । यहि विसे । णिदा-पचला जहि असंखेंज । यहि विसे० । थीणगिद्धि०३ ज०हि० संखेंज। यहि विसे । सव्वत्थोवा लोभसंज. जहि । यट्टि विसे । मायासंज जटि संखेंजः । यट्टि विसे । माणसंज. जहि विसे । यहि विसे० । कोधसंज० जहि० विसे०। यहि विसे । पुरिस० ज०हि० संखेंज । यहि विसे । हस्स--रदि--भय--दुगु० ज०टि० असंखें । यहि विसे । अरदि-सोग. जाहि० संखेज । यहि विसे० । पच्चक्खाणावर०४ ज हि संखेंज० । यहि० विसे । अपच्चक्खाणा०४ जहि० संखेंज०। यहि विसे । अणंताणुवंधि०४ ज०हि० संखेंज । यहि विसे । मिच्छ० ज०हि. विसे । यहि बिसे । इत्थि०-पुरिस० ज०हि विसे । यहि विसे । णवूस० जहि विसे० । यहि विसे । सव्वत्थोवा देवगदि० ज०हि । यहि. विसे० । मणुसग० जट्टि संखेंजगु० । यहि० विसे । तिरिक्खग० जहि० संखेंज । यहि. विसे । णिरयग० जहि संखेजः। यहि विसे० । सव्वत्थोवा पंचिंदि० ज०हि० । यहि. ६२७. पाँची मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवों में चार दर्शनावरणका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे निद्रा और प्रचलाका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्यानगृद्धि तीनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । लोभ संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मायासंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे मानसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे क्रोध संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे हास्य, रति, भय और जुगुप्साका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे अरति और शोकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे प्रत्याख्यानावरण चारका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अप्रत्याख्यानावरण चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अनन्तानुबन्धी चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे स्त्रीवेद और पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । देवगतिका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मनुष्यगतिका जघन्य स्थितिबन्धसंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे तिर्यञ्चगतिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे नरक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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