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________________ द्विदिश्रप्पा बहुगपरूवणा २८५. ६१६. रिए उकस्सभंगो । वरि पुरिस ०. ०-- हस्स - रदि-भय- दुगु ० ज० हि० थोवा । यहि० विसे० । अरदि-- सोग० ज० द्वि० विसे० । यट्टि० विसे० । इत्थि० ज० कि० विसे० । यहि ० विसे० | एस० ज० द्वि० विसे० । यद्वि० विसे० । सोलसक० ज० हि० विसे० । यद्वि० विसे० | मिच्छ० ज०ट्ठि० विसे० । यट्टि० विसे० | एवं पढमाए । ~ ६२०. विदयादि याव छट्टि ति सव्वत्थोवा छदंस० ज०ट्ठि० । यहि० विसे० । श्रीगिद्धि०३ ज० द्वि० संखेज्ज० । यट्टि विसे० । सव्वत्थोवा पुरिस०हस्स -- रदि-भय-दुगु ० ज० हि० । यहि० विसे० । अरदि-सोग० ज० हि० विसे० । यद्वि० विसे० । बारसक० ज० हि० विसे० । यहि० विसे० । श्रताणुबंधि०४ ज० द्विसंखेज्ज० । यट्ठि० विसे० । मिच्छ० ज० द्वि० विसे० । यहि० विसे० । इत्थि० ज० वि० संखेज्ज० | यट्टि० विसे० । स० ज० हि० विसे० । यहि० विसे० । ६२१. सव्वत्थोवा मणुसग० ज० द्वि० बं० । यहि विसे० । तिरिक्खग० ज० द्वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । एवं आणुपु० । सव्वत्थोवा समचदु० ज० हि० । ६१९. नारकियोंमें उत्कृष्टके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि पुरुषवेद, हास्य, रति, भय और जुगुप्सा इनका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति और शोकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सोलह कषायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए । ६२०. दूसरीसे लेकर छठी तक पृथिवी में छह दर्शनावरणका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्यानगृद्धि तीनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । पुरुषवेद, हास्य, रति, भय और जुगुप्साका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे अरति और शोकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे बारह कषायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अनन्तानुबन्धी चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसक वेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । ६२१. मनुष्यगतिका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे तिर्यञ्चगतिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार अनुपूर्वियोंकी मुख्यताले अल्पबहुत्व जानना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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