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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे सव्वलो० । अथवा सरीरपञ्जत्तीए पञ्जत्ती पजत्तगदस्स खेत्तभंगो। उज्जो०-चादर०जसगि० उक. सत्तच्चों० । अणु० सव्वलो० । अण्णत्थ खेत्तं । देवगदि०४ तित्थय० उक्क० अणु० खेनं । सेसाणं उभयथा उक्क० लो० असंखेंज० । अणु० सव्वलो० ।
४६२. वेउव्वियका० पंचणा०-णवदंसणा०-सादासाद०-मिच्छ०-सोलसक०सत्तणोक०-तिरिक्खगदि-पोरालि०-तेजा०-०-हुंड०-चण्ण०४-तिरिक्खाणु०-अगु०४उज्जो०-बादर-पज्जत्त-पत्तेय-थिराथिर-सुभासुभ-दूभग-अणादें-जस० - अजस०णिमि०-णीचा-पंचंत० उक्क० अणु० अढ०-तेरह । इस्थि०-पुरिस०-पंचिंदि०पंचसंठा०-ओरालि० अंगो०-छस्संघ०-दोविहा०-तस-तुभग-दोसर०-आदें. उक्क० अणु० अट्ठ-बारह० । दोआयु०-मणुसगदि-एइंदि०-मणुसाणु०-आदाव-यावरतित्थय०-उच्चा० देवोघं । वे उब्धियमि०-आहार०-आहारमि० खेतभंगो।।
४९३. कम्मइग० पंचण।०-णवदंसणा०-सादासाद०-मिच्छ०-सोल सक०णवणोक०-तिरिक्खगदि-पंकिंदि०-ओरालि०-तेजा०-कम्म०-छस्संठा०-ओरालि०
असंख्यातवें भाग प्रमाण और सव लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है अथवा शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवोंकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्रके समान है। उद्योत, बादर और यशःकी तिकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अन्यत्र स्पर्शन क्षेत्रके समान है। देवगतिचतुष्क और तीर्थङ्कर इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीवोंका रपर्शन क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंकी दोनों प्रकारसे उत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यात भाग प्रमाण है तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके बधक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पशन किया है।
४९२. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कपाय, सात नोकपाय, तिर्यचगति, औदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तियश्चगत्यानुपूर्वी. अगुरुलवु चतुष्क, उद्योत, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तराय इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, पञ्चेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर और आदेय इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । दो श्रायु, भनुष्यगति, एकेद्रिय जाति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, स्थावर, तीर्थङ्कर
और उच्चगोत्र इनका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। वैक्रियिमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियों की मुख्यत।से स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
४९३. कामणकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दशनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कपाय, नौ नोकपाय, तियश्चगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, वणचतुष्क,
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