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________________ जहणपरत्थाणबंध सरिणयासपरूवणा १७१ पसत्थ०-तस०४ - थिरादिक- णिमि० उच्चा० पंचंत० रिण० बं० । तं तु० । एवमेदाओ ऍकस्स । तं तु० । ३६६. असादा० ज० द्वि० बं० पंचणा० णवदंसणा०--मिच्छ०- सोलसक०-भयदु०- मणुसग ०-पंचिंदि०-ओरालिय० तेजा० क० समचदु० ओरालि० अंगो० वज्जरि०वरण ०४ - मणुसा० गु०४ - पसत्थवि ० [०--तस०४- सुभग--सुस्सर - आदें० - णिमि०उच्चा० - पंचंत० णि० बं० संखेज्जभा० । हस्स -रदि- थिर-सुभ-जसगि० सिया ० संखेज्जभा० । अरदि-सोग - अथिर असुभ अजस० सिया० । तं तु० । एवं अथिर-असुभअजस० । - ३६७. इत्थवे० ज० हि०बं० पंचणा० एवदंसणा०-मिच्छ० - सोलसक०-भयदु०- मणुस ० - पंचिंदि०--ओरालि ० तेजा ० क ० - ओरालि० श्रंगो ० - वरण ०४ - मणुसागु० - प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय इनका नियमसे बन्धक होता है, किन्तु वह जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा श्रजघन्य, एक समय अधिकसे लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार इन सब प्रकृतियोंका परस्पर सन्निकर्ष जानना चाहिए। किन्तु तब वह जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि श्रजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य, एक समय अधिक से लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग अधिकतक स्थितिका बन्धक होता है । ३६६. असातावेदनीयकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, चौदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, औदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराच संहनन, वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्तविहायोगति, त्रसचतुष्क, सुभग, सुस्वर, देय, निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य संख्यातवाँ भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है । हास्य, रति, स्थिर, शुभ और यशःकीर्ति इनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो नियमसे जघन्य संख्यातवाँ भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है । अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशः कीर्ति इनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता और जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य, एक समय अधिक से लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग अधिकतक स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार अस्थिर, अशुभ और यशःकीर्तिकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । ३६७. स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, श्रदारिक शरीर, तेजसशरीर, कार्मण शरीर, श्रदारिक आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, सुभग, सुस्वर, श्रदेय, निर्माण, उच्चगोत्र और For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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