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________________ १२० महाबंधे दिदिबंधाहियारे ब्भहियं बं० । माणसंज. जहहिदिबं. दोएहं संजल० णि बं। णि• अज० संखेंजगुणब्भहियं बं० । मायासंज० जहछि बं० लोभसंज. णि• बं० संखेंजगुणब्भहियं बं०। २४०. इत्थिवे० जह०हिबं० मिच्छ-बारसक०-भय-दुगु [णि. बं. ] असंखेजभागब्भहियं बं० । चदुसंज० णि बं० णि० अज० असंखेंजगुणभहियं बं० । हस्स-रदि-अरदि-सोग सिया० असंखेंज भागभहियं बं० । एवं रणवुस । २४१. पुरिस जह हि बं० चदुसंज.णि. बं. संखेजगुणब्भहियं बं० । २४२. अरदि० जह०हि०० मिच्छत्त-बारसक०-भय-दुगु० पि. बं. णि अज० असंखेंजभागब्भहियं बं० । चदुसंज० णि बं० णि अज० असंखेंज्जगुणब्भहियं बं० । सोग णि बं० । तं तु । एवं सोग । २४३. णिरयायु० जाहिबं० सेसाणं अबंधगो एवमएणमएणाणं अबंधगो। संज्वलनको जघन्य स्थितिका बन्धक जीव दो संज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य संख्यातगुणा अधिक स्थितिका बन्धक होता है। माया संज्वलनकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव लोभ संज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य संख्यातगुणा अधिक स्थितिका बन्धक होता है। २४०. स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य असंख्यातवाँ भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है। चार संज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य असंख्यात गुणा अधिक स्थितिका बन्धक होता है। हास्य, रति, अरति और शोक इनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् प्रबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो नियमसे अजघन्य असंख्यातवाँ भाग अधिक स्थितिका वन्धक होता है। इसी प्रकार नपुंसक वेदको मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। २४१. पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव चार संज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमले अजघन्य संख्यात गुणा अधिक स्थितिका बन्धक होता है। २४२. अरतिकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव मिथ्यात्व, बारह कपाय, भय और जुगुप्सा इनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य असंख्यातवाँ भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है। चार संज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य असंख्यात गुणा अधिक स्थितिका बन्धक होता है। शोकका नियमसे बन्धक होता है जो जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य, एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तक स्थितिका वन्धक होता है। इसी प्रकार शोककी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। २४३. नरकायु की जघन्य स्थितिका बन्धक जीव शेष आयुनोंका प्रबन्धक होता है। इसी प्रकार परस्पर एक पायुका बन्ध करनेवाला अन्य आयुओका प्रबन्धक होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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