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________________ जहण्णसामित्तपरूवणा ४१ खवगअणियट्टिस्स चरिमे जह० वट्टमाणस्स । आयु० जह• हिदि० कस्स ? अएणद० तिरिक्वस्स वा मणुस्सस्स वा एइदि० वेइंदि० तेइ दि० चदुरिंदि० पंचिंदियस्स वा सरिण असरिण• बादर० सुहुम० पजत्तस्स वा अपज्जत्तस्स वा सागारजागार• तप्पाअोगासंकिलिहस्स जहणियाए आवाधाए जहएणए हिदिबंधे वट्टमाणयस्स । एवं मणुस ३-पंचिंदिय-तस०२-पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि-ओरालियका०-अवगद-लोभक०-आमि०-सुद-प्रोधि-मणपज्जव०-संजद०-चक्खुदं०अचक्खुदं०-अोधिदं०-मुक्कले०-भवसि-सम्मादिहि-खइग-सएिण-आहारग त्ति । णवरि आयु० विसेसो जाणिदव्यो । अवगद० आयुगं णत्थि । आभि-सुद-अोधिः ओधिदं०-सम्मादि०-खइग. आयु० जह• हिदि• कस्स ? अएणद० देवस्स वा णेरइयस्स वा तप्पाओग्गसंकिलि• जहएिणयाए आवाधाए जह• हिदि० वट्टमाणगस्स । मणपज्जव०-संजद० आयु. जह• हिदि० कस्स ? अणद० पमत्तसंज० तप्पाप्रोग्गसंकिलिहस्स । सुक्काए आयु० जहरू हिदि. कस्स ? अण्णद. देवस्स मिच्छादि० तप्पाअोग्गसंकि० जहावाधा० जहहिदि० वट्टमाणस्स । सेसाणं ओघभंगो। स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर तिर्यंच, मनुष्य, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय, संशी, असंशी, बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त और अपर्याप्त जो भी हो, साकार जागृत है, तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है और जघन्य आबाधाके साथ जघन्य स्थितिबन्ध कर रहा है, वह आयु. कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिक, पञ्चेन्द्रियद्विक, त्रस. द्विक, पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, अपगतवेदी, लोभकषायी, आमिनिबोधिकशानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययशानी, संयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, भव्यसिद्धिक, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, संक्षी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। किन्तु आयुके सम्बन्धमें कुछ विशेषता है। यथा-अपगतवेदी जीवके आयुकर्मका बन्ध नहीं होता। आभिनिबोधिकहानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें आयु कर्मके जघन्य स्थितिवन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव या नारकी जो तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है और जघन्य अावाधाके साथ जघन्य स्थितिका बन्ध कर रहा है, वह आयुके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। मनःपर्ययज्ञानी और संयत जीवों में आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव जो तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है, वह आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । शुक्ललेश्यामें आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव जो मिथ्यादृष्टि है, तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है और जघन्य आबाधाके साथ जघन्य स्थितिका बन्ध कर रहा है,वह आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। शेष मार्गणाओंमें आयु कर्मके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी श्रोधके समान है। विशेषार्थ-यहाँ ओघसे आठों कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धके स्वामीका विचार किया गया है। सात कोका जघन्य स्थितिबन्ध क्षपक श्रेणिमें जहाँ जिस कर्मको बन्धव्युच्छित्ति द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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