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महाबंधे हिदिबंधाहियारे सत्तएणं कम्माणं उक्क हिदि. कस्स ? अण्ण असंजदसम्मा० तप्पाअोग्गउक्कस्ससंकिलिट्ठस्स मिच्छत्ताभिमुहस्स। सासणे सत्तएणं कम्माणं उक्क० हिदि. कस्स ? अण्ण• चदुगदियस्स सव्वसंकिलिट्टस्स मिच्छत्ताभिमुहस्स। आयु० उक्क० हिदि० कस्स ? अण्णद. मणुसस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्स । सम्मामि० सत्तएणं कम्माणं उक्क हिदि. कस्स. ? अण्णद० चद्गदियस्स उक्कस्ससंकिलिहस्स मिच्छत्ताभिमुहस्स।
५५. असणिण सत्तएणं कम्माणं उक्क टिदि. कस्स ? अण्णद पंचिंदियपज्जत्तस्स सव्वसंकिलहस्स । आयु० उक्क हिदि० कस्स ? तप्पाओग्गसंकिलिहुस्स । अणाहार० कम्मइगभंगो । एवं उक्कस्ससामित्तं समत्तं ।
५६. जहएणगे पगदं । दुविधो णिदेसो—ोघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण छण्णं कम्माणं जहएणो हिदिबंधो कस्स होदि ? अण्णदरस्स खवगस्स सुहुमसंपराइगस्स चरिमे हिदिवंधे वट्टमारणस्स । मोह. जह• हिदि० कस्स ? अएणद. कौन है ? प्रमत्तसंयत जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । उपशम सम्यग्दृष्टियोंमें सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है? जो अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला है और मिथ्यात्वके अभिमुख है,वह सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । सासादन सम्यग्दृष्टियों में सात कमौके उत्कृष्टस्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका जीव सबसे अधिक संक्लेश परिणामवाला है और मिथ्यात्वके अभिमुख है,वह सात कर्मों के उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है? जो अन्यतर मनुष्य तत्प्रायोग्य विशद्ध परिणामवाला है,वह श्रायुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिवन्धका स्वामी है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका जीव उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला है और मिथ्यात्वके अभिमुख है,वह सात कमौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है।
५५. असंशियोंमें सात कोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर पञ्चेन्द्रिय जीव पर्याप्त है और सबसे अधिक संक्लेश परिणामवाला है,वह सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला असंज्ञी जीव हैं, वह अायुकमेके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । अनाहारकोंमें सब कथन कार्मण काययोगियोंके समान है।
विशेषार्थ-असंज्ञी जीव मरकर भवनवासी और व्यन्तर देव भी होते हैं और प्रथम नरकमें भी जाते हैं। यहां असंक्षियोंके आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध उत्कृष्ट संक्लेशरूप परिणामोंसे ही कराया है। इससे विदित होता है कि असंशियोंके देवायुकी अपेक्षा नरकायुका स्थितिबन्ध अधिक होता है।
इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हूश्रा। ५६. अब जघन्य स्वामीका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा छह कर्मोके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है? जो अन्यतर सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपक जीव अन्तिम स्थितिबन्धमें अवस्थित है, वह छह कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। मोहनीयके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अनिवृत्ति क्षपक जीव अन्तिम जघन्य स्थितिवन्धमें अवस्थित है, वह मोहनीयके जघन्य For Private & Personal Use Only
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