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________________ महावंधे हिदिबंधाहियारे ४८. एइंदिएसु सत्तएणं कम्माणं उक्क हिदि कस्स ? अण्णदर० बादरस्स सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तगस्स सागारजागार० तप्पाअोग्गसंकिलिहस्स । आयु० उक्क हिदि० कस्स ? अएणद० प्पाओग्गविसुद्धस्स। एवं एइंदियवादरमुहुमपज्जत्तापज्जत-बीइंदि०-तेईदि०-चदुरिंदि पजत्तापज्जत्त-सव्वपुढवि०-आउ०-तेउ०-वाउ०-वणप्फदि-पत्तेयः-णियोद-बादर-सुहुमपज्जत्तापज्जत्त० । णवरि पज्जत्तए पज्जत्तगहणं कादव्वं । अपज्जत्तए अपज्जत्तगहणं कादव्वं । ४६. ओरालियका० सत्तएणं कम्माणं ओघं । णवरि दुगदियस्स। आयु ओघं। ओरालियमिस्से सत्तएणं कम्माणं उक्क० हिदि० कस्स० ? अण्णद. दुगदियस्स मिच्छादिहिस्स सएिणस्स तप्पागोग्गसंकिले० से काले सरीरपज्जत्ती गाहिदि त्ति तप्पाओग्ग० उक्क० संकिलेसे वट्टमाणगस्स । आयु० उक्क० हिदि० कस्स ? विशेषार्थ-यहाँ देवोंमें आठों कर्मोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धके स्वामीका कथन करते समय तीन विभाग कर दिये हैं-पहला सहस्रार स्वर्ग तकका, दूसरा नौवेयकतकका और तीसरा सर्वार्थसिद्धि तकका । नौ ग्रैवेयक तक मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि दोनों होते हैं तथा सहस्रार कल्पतक सात कोका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध ओघके समान बन जाता है, इसलिए ये विभाग किये गये हैं। बाकीकी सव विशेषताएँ आठों कमौके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध अद्धाच्छेदको देखकर समझ लेनी चाहिए। ४८. एकेन्द्रियोंमें सात कर्मोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो बादर है, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, साकार जागृत है और तत्प्रायोग्य संक्लेश-परिणामवाला है, ऐसा अन्यतर एकेन्द्रिय जीव सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थिति बन्धका स्वामी कौन है ? जो तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है, ऐसा अन्यतर एकेन्द्रिय जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार एकेन्द्रिय बादर और सूक्ष्म तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त, सब पृथिवीकायिक, सब जलकायिक, सब अग्निकायिक, सब वायुकायिक, सब वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर तथा निगोद जीवोंके और इनके बादर और सूक्ष्म तथा पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंका कथन करते समय 'पर्याप्त' पदका ग्रहण करना चाहिए और अपर्याप्तकोंका कथन करते समय 'अपर्याप्त' पदका ग्रहण करना चाहिए। विशेषार्थ-एकेन्द्रियादि इन मार्गणाओं में सब कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध श्रद्धाच्छेद पहले कह आये है। उसे ध्यानमें रखकर यहाँ उत्कृष्ट स्थितिबन्धके स्वामीका विचार कर लेना चाहिये । यहाँ केवल इतना ही बतलाया गया है कि विवक्षित मार्गणामें किस योग्यताके होनेपर उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है। ४९. औदारिकाययोगमें सात कर्मोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धके स्वामीका कथन ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि यह दो गतिके जीवोंके होता है। आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी अोधके समान है। औदारिक मिश्रकाययोगमें सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो मिथ्यादृष्टि है, संज्ञी है, तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है, तदनन्तर समयमें शरीर पर्याप्तिको प्राप्त होनेवाला है और तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशरूप परिणामोंसे युक्त है,ऐसा अन्यतर दो गतिका जीव सात कमौके उत्कृष्ट स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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