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________________ ३ उक्कस्ससामित्तपरूवणा अोघेण प्रादेसेण य । तत्थ ओघेण सत्तएणं कम्माणं उक्कस्सहिदिबंधो कस्स होदि ? अण्णदरस्स पंचिंदियस्स सएिणस्स मिच्छादिहिस्स सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तगदस्स सागारजागारसुदोवजुत्तस्स उक्कस्सियाए हिदीए उक्कस्सहिदिसंकिलेसेण वट्टमारण्यस्स अथवा ईसिमज्झिमपरिणामस्स वा। आयुगस्स उक्कस्सिो द्विदिबंधो कस्स होदि ? अण्णदरस्स मणुसस्स वा पंचिंदियतिरिक्वजोणिणीयस्स वा सएिणस्स सम्मादिहिस्स मिच्छादिहिस्स वा सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तगदस्स सागारजागारसुदोवजुत्तस्स तप्पाअोग्गविसुद्धस्स वा तप्पाअोग्गसंकिलिहस्स वा उक्कसियाए आबाधाए उक्कस्सगे हिदिवंधे वट्टमाणयस्स । ४४. प्रादेसेण णिरयगदीए णेरइएसु सत्तएणं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिवंधो कस्स होदि ? अण्णदरस्स वि मिच्छादिहिस्स सागारजागारसुदोवजुत्तस्स उक्कस्सियाए हिदीए उक्कस्सए हिदिसंकिलेसे वट्टमाणस्स अधवा इसिमझिमपरिणामस्स । आयुगस्स उक्क० हिदि० कस्स ? अएणदरस्स सम्मादिहिस्स वा मिच्छादिहिस्स वा सागारजागार० तप्पाओग्गविसुद्धस्स उक्कस्सियाए आबाधाए उक्कस्सिए हिदिबंधे वट्टमाणस्स । एवं सव्वासु पुढवीसु । वरि सत्तमाए पुढवीए आयु० मिच्छादिहिस्स तप्पाअोग्गविसुद्धस्स । दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा सात कर्मों के उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, साकार जागृत श्रुतोपयोगसे उपयुक्त है, उत्कृष्ट स्थितिबन्धके साथ उत्कृष्टस्थितिबन्धके योग्य संक्लेश परिणामवाला है अथवा ईषत् मध्यम परिणामवाला है,ऐसा कोई एक संशी पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीव उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो संज्ञी है, सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि है, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, साकार जागृत श्रुतोपयोगसे उपयुक्त है, तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है या तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है और उत्कृष्ट आबाधाके साथ उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कर रहा है, ऐसा कोई एक मनुष्य या पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च योनिवाला जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। विशेषार्थ-यहां श्रोघसे आठों कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धके स्वामीका निर्देश किया गया है। विशेष वक्तव्य इतना ही है कि तेतीस सागर प्रमाण नरकायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध मूलमें दिये गये विशेषणोंसे युक्त मनुष्य और तिर्यंच दोनोंके होता है। किन्तु तेतीस सागरप्रमाण उत्कृष्ट देवायुका बन्ध मात्र मनुष्यके ही होता है। ४४. प्रादेशकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकियोंमें सात कर्मोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो मिथ्यादृष्टि है, साकार जागृत श्रुतोपयोगसे उपयुक्त है, उत्कृष्ट स्थितिबन्धके साथ उत्कृष्टस्थितिबन्धके योग्य संक्लेश परिणामवाला है या ईषत् मध्यम परिणामवाला है,ऐसा कोई एकनारकी सात कमौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। आयकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ?जो सम्यग्दृष्टि है या मिथ्यादृष्टि है, साकार और जागृत उपयोगवाला होकर भी विशुद्ध परिणामवाला है और उत्कृष्ट आबाधाके साथ उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कर रहा है,ऐसा कोई एक नारकी आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवीमें मिथ्यादृष्टि तत्मायोग्य विशुद्ध १. गो० क०, गा० १३४। Jain Education International For Private & Personal Use Only 'www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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