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________________ २४ महाबंधे हिदिबंधाहियारे कम्पट्टिदी कम्म० । सुक्कले. आयु० जह ट्ठिदिवं० मासपुधत्तं । अंतोमु० आबाधा। कम्महिदी कम्मणिसेगो' । ३१. आदेसेण णिरयगईए णेरइएसु सत्तएणं कम्माणं जह० हिदिबं० सागरोवमसहस्सस्स तिषिण-सत्त भागा सत्त-सत्त भागा बे-सत्त भागा पलिदो० संखेज्जदिभागेण ऊणियं । अंतोमु. आवाधा। आबाधृ० कम्महिदी कम्म० । आयुग० जह• हिदिवं० अंतो० । अंतोमु० आबाधा । कम्महिदी कम्म० । एवं पढमजीवोंके आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध पल्योपमपृथक्त्वप्रमाण होता है, अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा होती है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक होते हैं। शुक्ललेश्यावालोंके आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध मासपृथक्त्वप्रमाण होता है, अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा होती है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक होते हैं। विशेषार्थ-श्रोधसे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, नाम, गोत्र और अन्तराय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध क्षपक सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयमें होता है । मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध क्षपक अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें होता है और आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध मिथ्यात्व गुणस्थानमें होता है। यहाँ अन्य जिन मार्गणाओं में ओघप्ररूपणा कही है उनमें आयुके सिवा सात कौका तो ओघके समान स्थितिबन्ध बन जाता है, क्योंकि उन सब मार्गणाओंमें क्षपकश्रेणिकी प्राप्ति सम्भव है। किन्तु उक्त मार्गणाओंमेंसे जिन मार्गणाओंमें मिथ्यात्व गुणस्थानकी प्राप्ति सम्भव नहीं है, उनमें आयुकर्मके स्थितिबन्धके सम्बन्धमें कुछ विशेषता है, जिसका निर्देश मूलमें ही किया है। खुलासा इस प्रकार है-श्रेणिमें आयुबन्ध नहीं होता, इसलिये अपगतवेदीके आयुकर्मके बन्धका निषेध किया है। आभिनियोधिक शान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि ये मार्गणाएँ मनुष्यगति और तिर्यंचगतिके समान नरकगति और देवगतिमें भी सम्भव हैं। यतः नरकगतिमें सम्यक्त्व अवस्थामें जघन्य स्थितिबन्ध वर्षपृथक्त्वप्रमाण होता है, अतः इन मार्गणाओं में प्रायुकर्मको जघन्य स्थितिबन्ध वर्षपृथक्त्वप्रमाण कहा है। मनःपर्ययशानी और संयत मनुष्य ही होते हैं । इनके संक्लेश परिणामोंकी बहुलता होनेपर छठवें गुणस्थानमें पल्योपमपृथक्त्वप्रमाण आयुबन्ध होता है। इसीसे इन मार्गणाओंमें आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध, उक्त प्रमाण कहा है। शुक्ललेश्या मिथ्यात्व गुणस्थानमें भी सम्भव है। यदि शुक्ललेश्यारूप परिणामोंके हीयमान होनेपर आयुबन्ध हो तो मासपृथक्त्व प्रमाण स्थितिबन्ध सम्भव है । इसीसे शुक्ललेश्यामें उक्त प्रमाण जघन्य स्थितिबन्ध कहा है। शेष कथन सुगम है। ३१. आदेशसे नरकगतिमें नारकियोंमें सात कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध एक हजार सागरका पल्यका संख्यातवां भागकम तीन बटे सात भाग, सात बटे सात भाग और दो बटे सात भाग प्रमाण होता है, अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आवाधा होती है और आबाघासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक होते हैं। आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है, अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा होती है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक होते हैं। इसी प्रकार प्रथम पृथिवी, देव-भवनवासीदेव और व्यन्तर देवोंमें जानना १. गो. क०, गा० १३६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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