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महाबंधे हिदिबंधाहियारे २८. अवगद० णाणावर०-दसणावर०-अंतराइगाणं उक्क. हिदिवं. संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । अंतोमु. आबाधा। आबाधृणिया कम्महिदी कम्म । वेदणीय-णामागोदाणं उक्क० हिदि० पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । अंतोमु० आवा० । आवाधू० कम्मट्ठिदी कम्मणि । मोहणीय० उक्क० हिदीबं० संखेज्जाणि वाससदाणि । अंतोमुहुत्तं आबा० । आबाधूणि० कम्महिदी कम्म० । मुहुमसंप० तिषणं कम्माणं उक्क० हिदिवं० मुहुत्तपुधत्तं । अंतोमु आबा० ।
आबाधू० कम्मट्टिदी कम्म । वेदणीय-णामा-गोदाणं उक्क हिदिवं० मासपुधत्तं । अंतोमु आवाधा। आवाधू० कम्मट्टिदी कम्म ।
२६. असगणीसु सत्तएणं कम्माणं उक्क० द्विदिबं० सागरोवमसहस्सस्स तिएण सत्तभागा सत्त सत्तभागा वे सत्तभागा। अंतोमुहुत्तं आबा० । आबाधू० कम्मट्टिदी कम्म० । आयुग० उक्क० द्विदिवं० पलिदोवमस्स असंखे भागो । पर उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है। आवाधा सर्वत्र अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सर्वत्र एक पूर्वकोटिप्रमाण है। मात्र इसकी आवाधामें अन्तर है, सब भेदोंकी उत्कृष्ट आयु अलग-अलग कही है। इसलिये जिसकी जितनी उत्कृष्ट प्रायु है. उसके अनुसार उसके आयुकर्मका उत्कृष्ट आबाधाकाल जानना चाहिये। शेष कथन सुगम है।
२८. अपगतवेदवाले जीवोंके छानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है, अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा होती है और
आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक होते हैं । वेदनीय, नाम और गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पल्यका असंख्योतवाँ भागप्रमाण होता है, अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आवाधा होती है और आवाधासे न्यून कर्म स्थितिप्रमाण कर्मनिषेक होते हैं। मोहनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यात सौ वर्षप्रमाण होता है, अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा होती है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक होते हैं। सूक्ष्मसाम्पराय संयत जीवोंके तीन कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध मुहूर्तपृथक्त्वप्रमाण होता है, अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा होती है और बाबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक होते हैं। वेदनीय, नाम और गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध मासपृथक्त्वप्रमाण होता है, अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा होती है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक होते हैं।
विशेषार्थ-यहाँ जो अपगतवेदी जीवके और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवके कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध बतलाया है, वह उपशमश्रेणीसे उतरनेवाले जीवके सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयमें और अपगतवेदके अन्तिम समयमें प्राप्त होता है । सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानमें मोहनीयका और श्रेणिमें आयुकर्मका बन्ध नहीं होता, इसलिये सूक्ष्मसाम्परायसंयतके मोहनीय और आयकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका और अपगतवेदी जीवके मात्र आयकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका निर्देश नहीं किया। शेष कथन सुगम है।
२९. असंही जीवोंमें सात कौंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक हजार सागरका तीन बटे सात भाग, सात बटे सात भाग और दो बटे सात भागप्रमाण होता है, अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा होती है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषक होते हैं। आयुकर्मका
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