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________________ ८ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे ६. पंचिंदियस्स सरिणस्स अपज्जत्तयस्स . युगवज्जाणं सत्तएणं कम्माणं तोमुहुत्तं बाधा मोत्तूरण जं पढमसमए ० तं बहुगं । जं विदियसमए ० तं विसे० । जं तदियसमए तं विसे । एवं विसे० विसेसहीणं जाव उक्कस्सेण अंतोकोडाकोडिति । आयुग अंतोमुहुत्तं बाधा मोत्तूण जं पढमसमए ० तं बहुगं । जं विदिय० तं विसे० । जं तदियस ० तं विसेस ० । एवं विसे० विसेसहीणं याव उक्कस्सेण पुव्वकोडि त्ति । ❤ ७. पंचिंदिय असण- पज्जत्ताणं श्रयुगवज्जाणं सत्तणं कम्पारणं अंतोमु० बाधा मोत्तूण जं पढमसम० तं बहुगं । विदियसम० तं विसे० । तदियसम० तं विसेस ० । एवं विसे० विसे० जाव उक्कस्सेण सागरोत्रम - सहस्स० तिरिण सत्त भागा सत्तसत्त भागा, बेसत्त भागा पडिपुरणा त्ति | आयुगस्स पुव्वकोडितिभागं बाधा मोत्तू जं पढमसम० तं बहुगं । जं विदियसम० तं विसे । जं तदियस ० तं विसे० । एवं विसे० विसे० जाव उक्कस्सेण पलदोवमस्स असंखेज्जदिभागो त्ति । ८. पंचिंदिय असण - अपज्जत्ताणं सत्तएां कम्मारणं श्रयुगवज्जाणं अंतो होते हैं, उनमें से बाधाके समय छोड़कर शेष में निषेक रचना नहीं होती, किन्तु जो स्थिति बन्ध होता है उन सबमें निषेक रचना होती है । प्रथम निषेकसे दूसरा और दूसरेसे तीसरा निषेक कितना हीन है, इस प्रकार व्यवधानके विना यहां विचार किया गया है, इसलिये इसे अनन्तरोपनिधा कहते हैं । SAMA ६. पंचेंद्रिय संज्ञी अपर्याप्तकके आयु कर्मके सिवा शेष सात कर्मोंके अंतर्मुहूर्त प्रमाण बाधाको छोड़कर जो प्रथम समय में कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे बहुत हैं । जो दूसरे समय में कर्म परमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। जो तीसरे समय में कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते है वे विशेषहीन हैं। इस प्रकार अंतःकोटाकोटि प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिके अंतिम समयतक विशेषहीन विशेषहीन निक्षिप्त होते हैं। आयुकर्मके अंतर्मुहूर्तप्रमाण आबाधाको छोड़कर जो प्रथम समय में कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे बहुत हैं । जो दूसरे समय में निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं । जो तीसरे समय में निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। इस प्रकार पूर्व कोटिप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिके अंतिम समयतक विशेषहोन विशेषहीन निक्षिप्त होते हैं । Jain Education International ७. पंचेंद्रिय असंज्ञी पर्याप्तकोंके श्रायुकर्मके सिवा शेष सात कर्मो के अंतर्मुहूर्तप्रमाण बाधाको छोड़कर जो प्रथम समय में कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे बहुत हैं। जो दूसरे समय में कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। जो तीसरे समय में कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। इस प्रकार एक हजार सागरके तीन बटे सात भाग, एक हजार सागरके सात बटे सात भाग और एक हजार सागरके दो बटे सात भाग प्रमाण परिपूर्ण स्थिति के अंतिम समयतक विशेषहीन विशेषहीन कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं । श्रायुकर्मके पूर्वकोटिके त्रिभागप्रमाण बाधाको छोड़कर जो प्रथम समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे बहुत हैं । जो दूसरे समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। जो तीसरे समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। इस प्रकार पल्योपमके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति के अन्तिम समयतक विशेषहीन विशेषहीन कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं । ८. पंचेंद्रिय अशी अपर्याप्तकोंके आयुकर्मके सिंवा शेष सात कर्मोंके अंतर्मुहूर्त प्रमाण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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