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________________ प्रास्ताविक (प्रथम संस्करण, १६५३ से) जब आज से लगभग छह वर्ष पूर्व महाबन्ध का प्रथम खण्ड प्रकाशित हुआ था, तब आशा यह की गयी थी कि इस परमागम के शेष खण्ड भी जल्दी-जल्दी अनुक्रम से पाठकों के हाथों में दिये जा सकेंगे। किन्तु इस प्रकाशन के लिए ज्ञानपीठ की बड़ी तत्परता और उत्साह होते हुए भी सम्पादन सम्बन्धी कठिनाई के कारण वर्ष पर वर्ष निकलते चले गये, पर द्वितीय खण्ड की सामग्री संस्था के पास न पहुँच सकी। अन्ततः प्रथम खण्ड के सम्पादक से सर्वथा निराश होकर तथा अधिक विलम्ब करना अनुचित समझकर अन्य सम्पादक की व्यवस्था अनिवार्य हो गयी। इस खण्ड के सम्पादक पं. फूलचन्द्रजी शास्त्री से विद्वत्समाज भलीभाँति परिचित है। धवलसिद्धान्त के सम्पादन व प्रकाशन कार्य में उनका बड़ा सहयोग रहा है, और अब पुनः सहयोग मिल रहा है। उन्होंने इस खण्ड के सम्पादन का कार्य सहर्ष स्वीकार किया और आशातीत स्वल्पकाल में ही-केवल कुछ मासों में ही-इतना सम्पादन और अनुवाद करके सिद्धान्तोद्धार के पुण्य कार्य में उत्तम योगदान दिया है। इस कार्य के लिए ग्रन्थमाला की ओर से हम उन्हें हार्दिक धन्यवाद देते हैं, और आशा करते हैं कि वे ऐसी ही लगन के साथ शेष खण्डों का भी सम्पादन कर इस महान साहित्यिक विधि को शीघ्र सर्वसुलभ बनाने में सहायक होने का पुण्य प्राप्त करेंगे। कार्य वेग से किये जाने पर भी, सिद्धहस्त होने के कारण, पण्डितजी के सम्पादन व अनुवाद कार्य से हमें बड़ा सन्तोष हुआ है, और भरोसा है कि पाठक भी इससे सन्तुष्ट होंगे। यहाँ हम ज्ञानपीठ के संस्थापक श्री शान्तिप्रसाद जी तथा संस्था के मन्त्री श्री अयोध्याप्रसाद जी गोयलीय की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते। एक तो उन्होंने विपत्तियों और विघ्नबाधाओं के कारण कभी अपने उत्साह को मन्द नहीं होने दिया और न क्षोभ-उद्वेग को स्थान दिया। और वे प्राचीन जैन सिद्धान्त सम्बन्धी साहित्य के प्रकाशन में किसी व्यावसायिक लेखे-जोखे से आशंकित नहीं होते। प्रत्युत उनकी भावना है कि जितना हो सके, जितनी उत्तम रीति से हो सके और जितने जल्दी हो सके, उतना जैन साहित्य का प्रकाशन किया जाय। हमें विश्वास है कि साहित्यिक विद्वान् उनकी इस उत्तम भावना से लाभ उठावेंगे और यह उपयोगी ग्रन्थ अति सुन्दर ढंग से विद्वत्संसार के सम्मुख उपस्थित करने में सहायता प्रदान करेंगे। -हीरालाल जैन -आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये ग्रन्थमाला सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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