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महाबंधे द्विदिबंधाहियारे
हिदि० जह० खुदाभव० समयू०, उक० पुव्वकोडिपुधत्तं । अज० जह० अंतो, उक्क पुव्वकोडी सादि ० | पज्जत्त - जोगिणीस मणुसागु० जह० हिदि० रात्थि अंतर | ज० द्विदि० जह० अंतो०, उक्क० पुव्वकोडी सादि० । गिरयगदि-रियाणु० जह० जह० अंतो०, उक्क० goaकोडितं । अज० हिंदि० जह० एग०, उक्क० goaकोडी देसू० । आहार०२ जह० द्विदि० णत्थि अंतरं । अज० जह० अंतो०, उक० पुव्वकोडि धत्तं ।
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२६६. मणुसपज्जत्ते धुविदारणं जह० अज पत्थि अंतरं । तिरिक्खायु० जह० हिदि ० पत्थि अंतर । अज० जह० उक्क० अंतो० । मणुसायु० जह० हिदि० जह० खुद्दाभ० समयू०, उक्क० अंतो० | अज० जह० उक्क० अंतो० । सेसाणं जह० हिदि ० पत्थि अंतर । अज० जह० एग०, उक्क० अंतो० ।
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एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट श्रन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त हैं और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक पूर्वकोटि वर्षप्रमाण है । किन्तु पर्याप्त और योनिनी मनुष्योंमें मनुष्यायुके जघन्य स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं है । जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक पूर्वकोटि है । नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है । आहारकद्विकके जघन्य स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरपूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है ।
विशेषार्थ - मनुष्यत्रिक में कुछ प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध क्षपकश्रेणिमें होता है। और जिनका क्षपकश्रेणि में नहीं होता, उनमें से चार आयुत्रोंको छोड़कर शेषका असंज्ञीचर मनुष्य के भवके प्रथम और द्वितीय समय में होता है, इसलिए यहाँ जघन्य स्थितिबन्धमें अन्तर कालका निषेध किया है। शेष अन्तर कालका विचार सुगम है ।
२६६. मनुष्य पर्याप्तकोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके जघन्य और जघन्य स्थिति - बन्धका अन्तर काल नहीं है । तिर्यञ्चायुके जघन्य स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं है । श्रजधन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । मनुष्यायुके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । शेष प्रकृतियों के जघन्य स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ।
विशेषार्थ -- जो संज्ञी जीव मनुष्य अपर्याप्तकों में उत्पन्न होता है, उसके उत्पन्न होने के प्रथम और द्वितीय समय में दो आयुके बिना शेष प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध होता है, इसलिए इनके जघन्य स्थितिबन्धके अन्तरका निषेध किया है। तथा जो ध्रुवबन्धवाली प्रकृ तियाँहें उनका इसके बाद निरन्तर अजघन्य स्थितिबन्ध होता रहता है, इसलिए इनके जधन्य स्थितिबन्धके अन्तर कालका निषेध किया है । परन्तु इनके सिवा जो सप्रतिपक्ष प्रकृतियाँ हैं, उनका अदल-बदलके बन्ध होना सम्भव है, इसलिए उनके अजघन्य स्थितिबन्धका
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