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________________ उक्कस्सट्ठिदिबंधअंतरकालपरूवणा ३७५ २२७. बादरे तिरिक्ख-मणुसायु०-मणुसग०-मणुसाणु०-उच्चा०वज्जाणं उक्क० जह० अंतो०, उक्क० अंगुल असं० । अणु० जह• एग०, उक्क० अंतो० । तिरिक्वायु० उक्क० जह• बावीसं वासहस्साणि समयू०, उक्क. सगहिदी । अणु० पगदिअंतरं । मणुसायु० एइंदियोघं । मणुसग०-मणुसाणुपु०-उच्चा० उक्क० जह अंतो०, उक्क० अंगुल० असंखे । अणु० जह• एग०, उक्क० कम्महिदी० । २२८. बादरपज्जत्तेसु सव्वाणं उक्क० [जह•] अंतो०, उक्क० संखेज्जाणि वाससहस्साणि । अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो० । णवरि तिरिक्वायु० उक्क० जह०, बावीसं वाससहस्साणि समयू०, उक्क० सगहिदी० । अणु. पगदिअंतरं । मणुसायु० एइंदि०ओघं । मणुसग०-मणुसाणुपु०-उच्चा० उक्क० जह• अंतो' । अणु० जह एग०, उक्क० दो वि संखेज्जाणि वाससहस्साणि । बादरअपज. तिरिक्खअपज्जत्तभंगो। २२६. सुहुमेइंदिएमु तिरिक्वायु० उक्क० जह० अंतो० समयू०, उक्क० कायहिदी० । अणु० पगदिअंतरं । मणुसायु, उक्क पत्थि अंतरं । अणु० पगदिअंतरं । २२७. बादर एकेन्द्रियों में तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रको छोड़कर शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम बाईस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट अन्तर अपनी स्थितिप्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य एकेन्द्रियोंके समान है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कर्मस्थितिप्रमाण है।। २२८. बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवों में सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम वाईस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट अन्तर अपनी स्थितिप्रमाण : है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य एकेन्द्रियोंके समान है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है तथा इन दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष है । बादरअपर्याप्तकोंका भङ्ग तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान है। ___२२९. सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों में तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थिति प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। मनुष्यगति, १. मूलप्रतौ अंतो उक्क० अणु० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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