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________________ ३६६ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे जह अंतो०, उक्क० अणतकालमसंखे० । अणु० हिदि० जह• एग०, उक्क० पुवकोडि देसू० । णवुस-पंचसंठा०-पंचसंघ०-अप्पसत्थ०-दूभग-दुस्सर-अण्णादे०णीचा० उक्क० हिदि० जह० अंतो, उक्क० अणतकालं० । अणु० जह० एग०, उक्क० बेछावट्ठिसाग० सादि० तिषिण पलिदो० देसूणा०। २१८. णिरयायु० उक्क० हिदि० जह० पुवकोडि-दसवस्ससहस्साणि समयणाणि, उक्क० अणंतकालं० । अणु० जह० अंतो०, उक्क० अणतकालं० । तिरिक्खायु० उक्क० जह० पुव्वकोडी समयूण, उक्क० अणंतकालं० । अणु० जह अंतो०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । मणुसायु० उक्क० हिदि० जह० पुव्वकोडि 'समयू०, उक्क० अणंतकालं० । अणु० जह० अंतो०, उक्क० अणंतकालं० । देवायु० उक्क० जह० पुव्वकोडि-दसवस्ससहस्सं समयूणं, उक्क० अद्धपोग्गलं० । अणु० ज ह० अंतो०, उक्क० अणंतकालं। २१६. वेउव्वियछक्कं उक्क० जह० अंतो०, उक्क० अणंतकाल । अणु० जह० एग०, उक्क० अणंतकालं० । तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणु [ उज्जोव० ] उक्क० जह. स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण है। नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुस्खर, अनादेय और नीचगोत्र प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो छयासठ सागर और कुछ कम तीन पल्य है। २१८. नरकायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक पूर्वकोटि और एक समय कम दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम पूर्वकोटि है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागर पृथक्त्व है । मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम पूर्वकोटि है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम एक पूर्वकोटि और दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट अन्तर अर्ध पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। २१९. वैक्रियिक छहके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थिति बन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल 1. मूलप्रतौ कोडि देसू० समयू० इति पाठः । २. मूलप्रतौ तिरिक्खाणु० उच्चा० उक्क० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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