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________________ उक्कस्सट्ठिदिबंधअंतरकालपरूषणा ३६५ २१६. आहारे धुविगाणं थीणगिद्धितियाणं च जह० हिदि. जह• एग०, उक्क० अंतो । अज हिदि० जह० एग०, उक्क अंगुलस्स असंखे० । णवरि खवगपगदीणं जह० हिदि० ओघं । सेसाणं पगदीणं ओघं । अणाहार० कम्मइगभंगो। एवं कालं समत्तं । अंतरकालपरूवणा २१७. अंतरं दुविध--जहएणय उक्कस्सयं च। उक्कस्सए पगर्द। दुवि०--ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा-छदसणा०-सादासा०-चदुसंज--पुरिस-हस्स-रदिअरदि-सोग-भय-दुगुं ०-पंचिंदि०-तेजा०-क-समचदु०-वएण०४-अगु०४-पसत्थवि०तस०४-थिराथिर-सुभासुभ-सुभग-सुस्सर-आदे०-जस-अजस-णिमि-पंचंत. उक्कस्सहिदिबंधंतरं केवचिरं कालादो होंति ? जह० अंतो०, उक्क० अणंतकालमसंखे । अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो० । थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबंधि०४इत्थिवे. उक्क हिदि० केवचिरं ? जह• अंतो०, उक्क० अणंतकालमसं० । अणु. जह० एग०, उक्क० बेछावहिसा० देसू । इत्थिवे. सादि । अट्ठक० उक० हिदि. ___२१६. आहारक जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली और स्त्यानगृद्धित्रिक प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इतनी विशेषता है कि क्षपक प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका काल ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका काल श्रोधके समान है। अनाहारक जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग कार्मणकाययोगी जीवोंके समान है। इस प्रकार जघन्य काल समाप्त हुआ। इस प्रकार काल प्ररूपणा समाप्त हुई। अन्तर काल प्ररूपणा २१७. अन्तर दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और श्रादेश। श्रोधसे पाँचहानावरण, छह दर्शनावरण, सातावेदनीय. असातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुखर, आदेय, यशः कोर्ति, अयशाकोति, निर्माण और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर काल कितना है ? जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अंतर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार और स्त्रीवेदके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर काल कितना है ? जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुगलपरिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धकाजघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कन दो छयासठ सागर है । उसमें भी स्त्रीवेदके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर काल साधिक दोण्यासठ सागर है। आठ कषायकेउत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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