SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जहण्णट्ठिदिबंधकालपरूवणा ३६१ मुहस्स यात्रो पगदीओ उज्जोववज्जारो तारो पग० जह• हिदि० उक्क० अंतो। २०६. आभि०-सुद०-प्रोधि० सादादिछएणं ओघसादभंगो। असादादिछक्कं अोघं । मणुसग०-ओरालि-अोरालि अंगो-बजरिसभ -मणुसाणु० जह• हिदि० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अज० हिदि० जह० एग०, उक्क० तेत्तीसं सा । सेसाणं उक्कस्सभंगो । मणपज्ज-संजद-सामाइ०-छेदो० उक्कस्सभंगो। णवरि सादादि-असादादि० आभिणि भंगो । ___ २०७. परिहार० धुविमाणं अधापवत्त० जह० हिदि० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अज. हिदि. जह० एग०, उक्क० पुव्वकोडी देसू० । सेसाणं जह. अज० हिदि० जह• एग०, उक० अंतो० । अथवा दंसणमोहक्खवगस्स कदकरणिजस्स दिज्जदि तदो जह० हिदि० जह• उक्क० अंतो । अज हिदि० जह• अंतो०, उक० पुचकोडी देसूणं । सादा०-हस्स-रदि-आहारदुग-थिर-मुभ-जस० जह० [जह.] उक्क० अंतो० । अंज. जह० एग०, उक्क. अंतो० । असादा०-अरदि-सोगअथिर-असुभ-अजस० जह० अज हिदि. जह० एग०, उक्क० अंतो । सुहुमसं० सव्वपगदीणं जह० हिदि० ओघं । अज० द्विदि० जह० एग०, उक्क० अंतो० । सिवा जिन प्रकृतियोंका बन्ध होता है, उनके जघन्य स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। २०६. आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें साता आदिक छह प्रकृतियोंका भङ्ग ओघमें कहे गये साताप्रकृतिके समान है। असाता आदि छह प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । मनुष्यगति, औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराच संहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वी प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्माहत है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिक संयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवों में अपनी प्रकृतियोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । इतनी विशेषता है कि साता आदि और असाता आदि प्रकृतियोंका भङ्ग आभिनिबोधिक ज्ञानी जीवोंके समान है। २०७. परिहारविशुद्धि संयत जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जधन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तहर्त है। अथवा मोहनीयकी क्षपणा करनेवाले कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि जीवके इन प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामित्व प्राप्त होता है, इसलिए इनके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि है। साता वेदनीय, हास्य, रति, आहारकद्विक, स्थिर, शुभ और यश-कीर्ति प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । असाता वेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय ल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमहत है । सूक्ष्मसाम्परायिक संयतोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका काल अोधके समान है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy