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________________ ४० महाबन्ध शंका-यदि बाह्य साधनों का लाभालाभ पुण्य-पाप का फल नहीं है, तो न सही; पर सरोगता और नीरोगता यह तो पाप-पुण्य का फल मानना ही पड़ता है? समाधान-सरोगता और नीरोगता दो प्रकार की होती है-आनुवंशिक और प्रयत्नसाध्य। दोनों अवस्थाओं में इसे पाप-पुण्य का फल नहीं माना जा सकता। जिस प्रकार बाह्य साधनों की प्राप्ति अपने-अपने कारणों से होती है, उसी प्रकार सरोगता और नीरोगता भी अपने-अपने कारणों से होती है। इसे पाप-पुण्य का फल मानना किसी भी अवस्था में उचित नहीं है। शंका-सरोगता और नीरोगता के क्या कारण हैं? समाधान-अस्वास्थ्यकर आहार, विहार व संगति करना आदि सरोगता के कारण हैं और स्वास्थ्यवर्धक आहार, विहार व संगति करना नीरोगता के कारण हैं। इस प्रकार कर्म की कार्यमर्यादा का विचार करने पर यह सुस्पष्ट प्रतीत होता है कि कर्म बाह्य सम्पत्ति के संयोग-वियोग का कारण नहीं है। किन्तु जिस कर्म का जो नाम है, उसी के अनुसार वह काम करता है। सम्पत्ति का संयोग और वियोग होता अवश्य है; किन्तु कहीं वह अनायास होता है और कहीं कषायपूर्वक होता है। इसलिए सम्पत्ति के संयोग का मुख्य कारण कषाय है और वियोग का कारण कहीं कषाय है और कहीं कषाय का त्याग है। जो रागादि में वशीभूत होकर उसका त्याग करते हैं, उनके वियोग का कारण रागादि परिणाम हैं और जो राग-द्वेष की हानि होने से उसका त्याग करते हैं, उनके उसके वियोग का कारण राग-द्वेष की हानि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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