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________________ ३४२ महाबंधे टिदिबंधाहियारे पसत्थवि०-सुभग-सुस्सर-आदे०-उच्चा० उक्क. असंखेजवस्सायुगाणं तिरिक्खमणुसाणुगाणं उक्कस्सभंगं भवदि । सादासादा०-इत्थि०-पुरिस-हस्स-रदि-अरदिसोग-चदुसंठा-पंचसंघ०-उज्जो०-अप्पसत्य-थिराथिर-सुभासुभ-भग-दुस्सरअणादे जस-अजस० उक्क अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो। १८०. सम्मामि० पंचणा०-छदस-बारसक०-पुरिस-भय-दुगु-दोगदिपंचिंदि०-चदुसरीर-समचदु०-दोअंगो०-वज्जरिसभ०-वएण०४-दोबाणु०-अगुरु०४-- पसत्थवि०-तस०४-सुभग-सुस्सर-आदे०-उच्चागो-णिमि-पंचंत० उक्क० अणु. जहएणु० अंतो। सादा-हस्स-रदि-थिर-सुभ-जस. उक्क० अणु० अोघं । असादा०-अरदि-सोग-अथिर-असुभ-अजस०उक्क० जहएणु० अंतो० । अणु. ओघं । मिच्छादि० मदिभंगो । विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट भङ्ग असंख्यातवर्षकी आयुवाले तिर्यञ्च और मनुष्योंके होता है । साता वेदनीय, असाता वेदनीय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, चार संस्थान, पाँच संहनन, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, दुस्खर, अनादेय, यशःकीर्ति और अर्यशःकीर्ति प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। विशेषार्थ-अवधिज्ञानी जीवोंके पाँच ज्ञानावरण आदि प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण घटित करके बतला आये हैं,उसी प्रकार यहाँ भी उन प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल जानना चाहिए । यहाँ एक श्रावलिसे ऊपर कालको अन्तर्मुहूर्त संशा है । तथा इन प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह आवलि है। सो इसका कारण यह है कि सासादन गुणस्थानका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह आवलि है। यद्यपि इन प्रकृतियों में कुछ परावर्तमान प्रकृतियाँ भी हैं, पर उनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक अलग-अलग गतिके जीव होनेसे यहाँ उनके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बन जाता है। इनके सिवा शेष सब परावर्तमान प्रकतियाँ हैं इसलिए उनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। १८०. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, दो गति, पञ्चेन्द्रिय जाति, चार शरीर, समचतुरनसंस्थान, दो प्राङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराच संहनन, वर्णचतुष्क, दो भानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, सुभग, सुखर, आदेय, उच्चगोत्र निर्माण और पाँच अन्तराय प्रकृतियों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। साता वेदनीय, हास्य, रति, स्थिर, शुभ और यश-कीर्ति प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल ओघके समान है। असाता वेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल ओघके समान है। मिथ्यादृष्टि जीवों में अपनी सब प्रकृतियों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल मत्यज्ञानी जीवोंके समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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