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उक्कस्सट्ठिदिबंधकालपरूवणा
३२५ लिया-तेजा.-क-वएण०४-अगु०-उप-णिमि० पंचंत० उक्क० ओघं । अणुः जहरू एग०, उक्क० अरणंतकालं. । तिरिक्खगदितिगं उक्क० अणु० अोघं । सेसाणं मणजोगिभंगो । ओरालियका० धुविगाणं उक्क० ओघं । अणु द्विदि० जह• एग०, उक्क. बावीसं वस्ससहस्साणि देसू० । तिरिक्खगदितिगं उक० ओघं । अण. जह० एग०, उक्क तिरिण वस्ससहस्साणि देसू । सेसाणं कायजोगिभंगो।।
१५७. ओरालियमि० पंचणा-णवदंसणा०-मिच्छत्त-सोलसक०-भय-दुगुओरालि-तेजा.-क०-वएण०४-अगु०-उप-णिमिल-तित्थय-पंचंतरा० उक्क० अणु०
भय, जुगुप्सा, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल ओघके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है। तिर्यञ्चगतित्रिक प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल ओघके समान है। तथा शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल मनोयोगी जीवोंके समान है। औदारिक काययोगवाले जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल
ोधके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है। तिर्यश्चगतित्रिकके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल ओघके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन हजार वर्ष है। तथा शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल काययोगी जीवोंके समान है।
विशेषार्थ-काययोगका उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जोएकेन्द्रियोंकी मुख्यतासे उपलब्ध होता है । यही कारण है कि काययोगमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है। अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंके निरन्तर तिर्यञ्चगति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका नियमसे बन्ध होता है और इनकी कायस्थिति असंख्यातलोक प्रमाण है। इन जीवोंके एक मात्र काययोग होता है,यह तो स्पष्ट ही है और ओघसे इन प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल इसी अपेक्षासे असंख्यात लोक प्रमाण कह पाये हैं। यही कारण है कि इन प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका उकृष्ट काल ओघके समान कहा है। औदारिक काययोगका उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है। इसीसे इस योगवाले जीवोंके ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है। किन्तु औदारिक काययोगकायह काल पृथिवीकायिकजीवोंके ही उपलब्ध होता है। अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंके नहीं। उसमें भी अग्निकायिक जीवकी उत्कृष्ट श्रायु तीन दिवसमात्र है, इसलिए उसकी यहाँ विवक्षा नहीं है। हाँ, वायुकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट स्थिति अवश्य तीन हजार वर्षप्रमाण है। किन्तु इसमें औदारिक काययोगका काल किञ्चित् न्यून है। तिर्यञ्चत्रिकका इतने काल तक बन्ध औदारिक काययोगमें यहीं पर होता है, इसीसे औदारिक काययोगमें तिर्यञ्चत्रिक प्रकृतियोंके अनुत्कष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन हजार वर्षप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है।
१५७. औदारिक मिश्रकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थकर और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट
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