SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उक्कस्स-सामित्तपरूवणा २७१ मिच्छादि० सागार०-जा० सउक्कस्ससंकिलि । पर०-उस्सा०-उज्जोव-बादर-पज्जत्तपत्तेयसरी उक्क० हिदि० कस्स० १ अएणद. देवस्स वा गैरइयस्स वा सागारजा० उक्क० संकिलि० । सुहुम०-अपज्ज०-साधार० उक्क हिदि० कस्स० १ अएणद. मणुसस्स वा तिरिक्खस्स वा पंचिंदि० सएिण. मिच्छादि० सागार-जा. उक्क० संकिलि। १२. इत्थिवे. पंचणा-णवदंस-असादावे-मिच्छत्त-सोलसक०-णवुसग०अरदि-सोग-भय-दुगु-तेजा-क-हुडसं०-वएण०४-अगुरु०४-बादर-पज्जत्त-पत्तेय - अथिरादिपंच-णिमिण-णीचागो-पंचंत० उक० हिदि० कस्स० १ अण्ण तिगदियस्स सएिणस्स मिच्छादि० सागार-जा० उक० संकिलि० अथवा ईसिमझिमपरिणामस्स । सादावे-इत्थि-पुरिस-हस्स-रदि-मणुसगदि-पंचसंठा०-ओरालि अंगो०छस्संघ०-मणुसाणु०-पसत्यवि०-थिरादिछक्क-उच्चा० उक्क हिदि० कस्स० १ अण्ण. तिगदियस्स सएिणस्स सागार-जा० तप्पाओ० उक०संकिलिः । ६३. णिरयायु० उक्क० हिदि० कस्स० १ अएण. मणुसस्स वा तिरिक्खजोणिणियस्स वा सएिणस्स मिच्छादि० सागार-जा० तप्पाओग्गसंकिलि० उक्लस्सिपरघात, उच्छवास, उद्योत, बादर, पर्याप्त और प्रत्येकशरीर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला अन्यतर देव और नारकी कार्मणकाययोगी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला अन्यतर मनुष्य और तिर्यश्च पञ्चेन्द्रिय संक्षी और मिथ्यादृष्टि कार्मणकाययोगी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। विशेषार्थ-कार्मणकाययोगमें चारों आयु, नरकद्विक और आहारकद्विक इन ८ प्रकतियोंके सिवा ११२ प्रकृतियोंका बन्ध होता है। शेष विशेषता मूलमें कही ही है। ९२. स्त्रीवेदमें पाँच झानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, अस्थिरादिक पाँच, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला अथवा अल्प,मध्यम परिणामवाला अन्यतर तीन गतिका संशी मिथ्यादृष्टि स्त्रीवेदी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, मनुष्यगति, पाँच संस्थान, औदारिक प्राङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, स्थिर आदिक छह और उच्च गोत्रके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला अन्यतर तीन गतिका संशी स्त्रीवेदी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। ९३. नरकायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला और उत्कृष्ट आवाधाके साथ उत्कृष्ट स्थितिबन्धमें विद्यमान अन्यतर मनुष्य और तिर्यश्चयोनि संशी मिथ्यादृष्टि स्त्रीवेदी जीव नरकायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी जानना चाहिए । इतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy