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________________ २६८ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे सादावे०-इत्थिवे-पुरिस-हस्स-रदि-मणुसगदि-पंचसंठा-पंचसंघ०-मणुसाणु०पसत्थवि०-थिरादिछक्क०-उच्चागो उक्क० हिदि० कस्स० ? अण्ण. पाणावरणभंगो । णवरि तप्पाओग्गसंकिलि०।। ८८. तिरिक्खायु० उक्क हिदि० कस्स. ? अएण० देवस्स वा णेरइगस्स वा मिच्छादि० तप्पाअोग्गविसुद्ध० । मणुसायु० उक्क० हिदि० कस्स. ? अएणद. देवस्स वा णेरइगस्स वा सम्मादिहिस्स वा मिच्छादि० तप्पाअोग्गविसुद्ध । तित्थयर० उक्क० हिदि कस्स० ? अण्णद. देवस्स वा गेरइगस्स वा सम्मा दिहिस्स उक्क संकिलि । एइंदि०-आदाव-थावर० देवोघं । पंचिंदिय-ओरालियअंगो०-असंपत्तसेव०-अप्पसत्थवि०-तस-दुस्सर० उक्क० द्विदि० कस्स० ? अएणदर० देवस्स सणक्कुमार याव सहस्सारंतस्स णेरइयस्स वा मिच्छादि० सागार-जा उक्क० संकिलि० । एवं चेव वेउव्वियमिस्स० । णवरि आयु० णत्थि । देव अथवा नारकी मिथ्यादृष्टि वैक्रियिक काययोगी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध का स्वामी है । सातावेदनीय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, मनुष्यगति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, मनुष्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, स्थिरादिक छह और उच्च गोत्रके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर शानावरणका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करनेवाला नारकी और देव जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। इतनी विशेषता है कि सत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला वैक्रियिक काययोगी जीव इन प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। ८. तिर्यञ्च आयुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला अन्यतर देव और नारकी मिथ्यादृष्टि वैक्रियिक काययोगी जीव तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट स्थितिवन्धका स्वामी है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला अन्यतर देव और नारकी सम्यग्दृष्टि अथवा मिथ्यादृष्टि वैक्रियिक काययोगी जीव मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला अन्यतर देव और नारकी सम्यग्दृष्टि वैक्रियिक काययोगी जीव तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। एकेन्द्रिय आतप और स्थावर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी सामान्य देवोंके समान है। पञ्चन्द्रिय जाति, औदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तासृपाटिका सहनन, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस और दुःस्वर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है १ साकार जागृत और उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला अन्यतर सानत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्प तकका देव और नारकी मिथ्यादृष्टि वैक्रियिक काययोगी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिवन्धका स्वामी है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके आयुकर्म का बन्ध नहीं होता। विशेषार्थ-वैक्रियिक काययोग देव और नारकियोंके होता है। इसमें बन्धयोग्य प्रकतियाँ १०४ हैं। इनमेंसे एकेन्द्रिय जाति, आतप और स्थावर इन तीन प्रकृतियोंका बन्ध नरकगतिमें नहीं होता, इसलिए इनके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी देव ही होता है। शेष सब प्रकृतियोंका बन्ध नारकी और देव दोनोंके होता है। इसलिए उनके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी देव और नारकी दोनों प्रकारके जीव कहे हैं। वैक्रियिक मिश्रकाययोगमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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