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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे
सदाणि । अंतोमु० आबा० । [आबाधू० कम्महि० कम्मणि० ] | सादावेदणीयजस० - उच्चागोदं जह० हिदि० संखेज्जाणि वाससदाणि । अंतोमु० आबा० । [आवाधू० कम्मडि० कम्मणि०] । चदुसंज० जह० द्विदि० सोलस वस्साणि | अंतोमु० आबा० । [आबाधू० कम्प०ि कम्मरिण ०] । पुरिसवेद० जह० हिदि० श्र वस्साणि | अंतोमु० आबा० । [आबाधू० कम्महि० कम्मणि० ] | सेसाणि पंचिंदियभंगो । सगवेद : पंचणा० चदुदंसणा ० -सादावे ० चदुसंज० - पुरिस०-जसगि०उच्चागो०-पंचंतरा० इत्थिवेदभंगो । सेसं मूलोघं । अवगदवे ० मूलोघं ।
५८. कोधे पंचणा० चदुदंसणा ० - पंचंतरा० जह० द्विदि० संखेज्जाणि वासाणि । अंतो० [० आवा० । [आबाधू० कम्महि० कम्मणि० ] | सादावे ० - जसगि०- उच्चागो० जह० ट्ठिदि० संखेज्जाणि बासस० । अंतोमु० आबा० । [आबाधू० कम्महि० कम्मणि० ] चदुसंज० जह० द्विदि० वे मासं । अंतोमु० आबा० । [आबाधू० कम्महि० कम्मणि० ] | माणे पंचणा० - चदुदंसणा पंचंतरा० जह० हिदि० वासपुधत्तं । अंतो० आबा । [आबाधू० कम्महि० कम्मणि० ] | सादावे ० - जसगि०उच्चागो० जह० द्विदि० संखेज्जाणि वासारिण । अंतो० आबा० [ बाधू ० कम्मद्वि० कम्मणि०] । तिरिण संज० जह० हिदि० मासो | अंतोमु० अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यात सौ वर्ष है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और बाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है । साता वेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगो
जघन्य स्थितिबन्ध संख्यात सौ वर्ष है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण बाधा है और बाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। चार संज्वलनोंका जघन्य स्थितिबन्ध सोलह वर्ष है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण बाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध आठ वर्ष है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण बाधा है, और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है । नपुंसक वेदवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, साता वेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, यशः कीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है । तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग मूलोघके समान है। अपगतवेदी जीवों में अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग
लोके समान है ।
५८. क्रोध कषायवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातवर्ष है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । साता वेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यात सौ वर्ष है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और आबाधा से न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है । चार संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध दो महीना है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और बाधा से न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । मान कषायवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध वर्षपृथक्त्वप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और श्रावाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है । सातावेदनीय, यशःकीर्ति और उच्च गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यात सौ वर्ष है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण बाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। तीन
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