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जहण्ण-श्रद्धाच्छेदपरूवणा
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जह० द्विदि० अंतोकोडाकोडी | अंतोमु० आबाधा० । [ आबाधू० कम्महि० कम्मणि०] । दोणि वचि० खवगपगदीणं चदुराणं श्रयुगाणं वेडव्वियछकं आहार० - आहार०ांगो० तित्थयरं च मूलोघं । सेसं बीइंदियपज्जत्तभंगो । कायजोगिओरालियकायजोगि० मूलोघं । ओरालियमिस्स० देवगदीच ०४ तित्थयरं च उक्कस्सभंगो । सेसारणं तिरिक्खोघं । वेउव्विय० सोधम्मभंगो | वेजव्वियमि० - आहार०आहारमि० उकस्सभंगो । देवायु० जह० हिदि० पलिदोवमपुधत्तं । तो ० आबा० । [कम्महिदी कम्मणिसेगो ] । कम्मइग० सगपगदीगं तिरिक्खोघं । णवरि देवगदि ०४ तित्थयरं च उक्कस्तभंगो |
५७. इत्थिवे० पंचरणा० चदुदंसणा ० पंचंतरा० जह० द्विदि० संखेज्जाणि वाससहस्साणि । अंतो० आबा० । [आबाधू० कम्मट्टि० कम्मणि०] सादावे० - जसगि०उच्चागो० जह० हिदि० पलिदो ० असंखे० । अंतोमु० आबा० । [ आबाधूकम्महि० कम्मग्णिसेगो ] । चदुसंज० - पुरिसवे० जह० हिदि० संखेज्जाणि वाससहस्सारिण अंतोमु० आबा० । [आबाधू० कम्महि० कम्मरिण ० ] | सेसाणं पंचिंदिभंग | पुरिस० पंचणा० चदुदंसणा ० - पंचंतरा० जह० द्विदि० संखेज्जाणि वास
अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है, अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधा से न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । दो वचनयोगी जीवों में क्षपक प्रकृतियों, चार आयु, वैक्रियिकषट्क, आहारक शरीर, श्राहारक श्राङ्गोपाङ्ग और तीर्थंकर प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबन्ध आदि मूलोघके समान है। शेष प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबन्ध आदि द्वीन्द्रियोंके समान है । काययोगी और औदारिकाययोगी जीवों में सब प्रकृतियोंका भङ्ग मूलोघके समान है । औौदारिकमि काय योगी जीवों में देवगतिचतुष्क और तीर्थकर प्रकृतिका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है । वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें सब प्रकृतियोंका भङ्ग सौधर्म कल्पके समान है। वैक्रियिकमिश्र काययोगी, आहारककाययोगी और श्राहारकमिश्रक्राययोगी जीवोंमें अपनी-अपनी प्रकृतियोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । इतनी विशेषता है कि श्राहारक काययोगी और श्राहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध पल्य पृथक्त्वप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण श्राबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । कार्मणकाययोगी जीवों में अपनी प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोके समान है । इतनी विशेषता है कि इनमें देवगतिचतुष्क और तीर्थकर प्रकृतिका भङ्ग उत्कृष्टके समान है।
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५७. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्ष प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । साता वेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध पल्यके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और श्रावाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। चार संज्वलन और पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण बाधा है और श्रावाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्म निषेक है। तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है । पुरुषवेदवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच
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