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________________ २३१ उक्कस्स-श्रद्धाच्छेदपरूवणा सव्वबंधो कोसव्वबंधो याव अप्पाबहुगे त्ति २४ । भुजगारबंधो पदणिक्खेश्रो वडिबंधो अज्झवसाणसमुदाहारो जीवसमुदाहारो त्ति । अद्धाच्छेदपरूवणा २६. अद्धाच्छेदो दुविधो-जहएणो उक्कस्सो य । उक्कस्सए पगदं । दुविधो णिद्देसो-अोघेण आदेसेण य । ओघेण पंचणाणा०-णवदंसणा०-असादावे-पंचंतरा० उक्कस्सो हिदिबंधो तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ। तिगिण वस्ससहस्साणि आबाधा । आबाधूणिया कम्महिदी कम्मणिसेगो। २७. सादावेद-इत्थिवे-मणुसगदि-मणुसाणु० उक्क. हिदिबं० परणारस सागरोवमाणि कोडाकोडीओ। पण्णारस वाससदाणि आबाधा। आवाधू० कम्महिदी कम्मणिसेगो। २८. मिच्छत्तं उक्त हिदिवं० सत्तरि सागरोवमाणि कोडाकोडीयो'। सत्त वस्ससहस्साणि आबाधा । अबाधूणिया कम्महिदी कम्मणिसेगो । सोलसकसा. उक्क० हिदि. चत्तालीसं सागरोवमणि कोडाकोडीओ । चत्तारि वस्ससहस्साणि आबाधा । आबाधृणिया कम्महिदी कम्मणिसेगो । पुरिस-हस्स-रदि-देवगदि-समचदु० बन्ध और नोसर्वबन्धसे लेकर अल्पबहुत्व तक २४ । भुजगारबन्ध, पदनिक्षेप, वृद्धिवन्ध, अध्यवसानसमुदाहार और जीवसमुदाहार। विशेषार्थ-इन अधिकारोंके विषयमें हम मूलप्रकृतिस्थितिबन्धका विवेचन करते समय लिख आये हैं, इसलिए वहाँसे जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। अद्धाच्छेदप्ररूपणा २६. श्रद्धाच्छेद दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तीस कोड़ाकोड़ी सागर है। तीन हजार वर्ष आबाधा है, और आवाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। २७. साता वेदनीय, स्त्रीवेद, मनुष्यगति और मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वीका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पन्द्रह कोडाकोड़ी सागर है । पन्द्रह सौ वर्ष प्रमाण आबाधा है और आवाधासे न्यून कर्म स्थितिप्रमाण कर्म निषेक है। २८. मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर है, सात हजार वर्षप्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्म स्थितिप्रमाण कर्म निषेक है । सोलह कषायोंका उत्कृष्ट तिबन्ध चालीस कोड़ाकोड़ी सागर है, चार हजार वर्ष प्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यूम कर्मस्थिति प्रमाण कर्म निषेक है । पुरुषवेद, हास्य, रति, देवगति, समचतुरस्रसंस्थान, 1. दुक्खतिघादीणोघं । गो. क. गा० १२८ । २. सादिस्थीमणुदुगे तदवं तु । गो. क. गा० १२८। ३. 'सत्तरि दंसणमोहे।'-०क० गा० १२८। ४. 'चारित्तमोहे य पत्तालं।'-गो क. गा० १२८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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