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________________ जोवसमुदाहारो २१७ संखेज्जगुणाणि । असादस्स तिहाणिययवमज्झस्स हेढदो हाणाणि संखेज्जगुपाणि । उवरिं संखेज्जगुणाणि । असादस्स चदुहाणिययवमझस्स हेढदो हाणाणि संखेज्जगुणाणि । सादस्स जहएणो हिदिबंधो संखेज्जगुणो । यहिदिबंधो विसेसाधियो। असादस्स' जहएणओ हिदिवंधो विसेसाधियो । यहिदिबंधो विसेसाधियो । एत्तो उक्कस्सयं दाहं गच्छदि त्ति सा हिदी संखेज्जगुणा। अंतोकोडाकोडी संखेज्जगुणा । सादस्स विहाणिययवमज्झस्स उवरिं एयंतसागारपाश्रोग्गहाणाणि संखेज्जगुणाणि । सादस्स उकस्सओ हिदिबंधो विसेसाधियो। यहिदिबंधो विसेसाधियो। दाहहिदी विसेसाधिया। असादस्स चदुढाणिययवमज्झस्स उवरिं हाणाणि विसेसाधियाणि। असादस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाधियो । यहिदिबंधो विसेसाधियो। इससे असाताका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट दाहको प्राप्त होता है, इसलिए वह स्थिति संख्यातगुणी है। इससे अन्तः कोटाकोटि संख्यातगुणी है। इससे साताके द्विस्थानिक यवमध्यके उपरिम सर्वथा साकार प्रायोग्य स्थान संख्यातगुणे हैं। इनसे साताका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे दाहस्थिति विशेष अधिक है । इससे असाताके चतुःस्थानिक यवमध्यके उपरिम स्थान विशेष अधिक हैं। इनसे असाताका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थिति बन्ध विशेष अधिक है। विशेषार्थ-पहले साताके चतुःस्थानिक, त्रिस्थानिक और द्विस्थानिक अनुभागका तथा असाताके द्विस्थानिक, त्रिस्थानिक और चतुःस्थानिक अनुभागका उल्लेख करके उनके आश्रयसे साकारप्रायोग्य, अनाकारप्रायोग्य और मिश्र स्थानोंका उल्लेख कर आये हैं। यहाँ इनको ध्यानमें रखकर स्थितिस्थानोंके अल्पबहुत्वका निर्देश किया गया है। इसका विचार पञ्चसंग्रह बन्धकरणमें भी किया है। वहाँ वह इस प्रकार दिया है-परावर्तमान शुभ प्रकृतियोंके चतुःस्थानिक यवमध्यके नीचेके स्थितिस्थान सबसे स्तोक हैं । इनसे उपरिम स्थान संख्यातगणे हैं। इनसे इन्हींके त्रिस्थानिक यवमध्यके नीचेके स्थान संख्यातगणे हैं। इनसे उपरिम स्थान संख्यातगुणे हैं। इनसे इन्हींके सर्वथा साकार प्रायोग्य द्विस्थानिक नीचेके स्थान संख्यातगुणे हैं। इनसे यहींके मिश्रस्थान संख्यातगुणे हैं। इनसे उपरिम मिश्रस्थान संख्यातगुणे हैं। इनसे यहींके साकार प्रायोग्य उपरिम स्थान संख्यातगुणे हैं। इनसे अशुभ द्विस्थानिक यवमध्यके नीचेके मिश्रस्थान संख्यातगुख हैं। इनसे द्विस्थानिक यवमध्यके नीचेके साकार प्रायोग्य स्थान संख्यातगुणे हैं। इनसे यवमध्यके ऊपरके द्विस्थानिक साकार प्रायोग्य स्थान संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार यवमध्यके नीचे और ऊपरके त्रिस्थानिक स्थान संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार यवमध्यके नीचे और ऊपरके चतुःस्थानिक स्थितिस्थान संख्यातगुणे हैं। प्राचार्य मलयगिरिने इस अल्पबहुत्वमें परावर्तमान शुभ प्रकृतियों, परावर्तमान अशुभ प्रकृतियोंके जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिबन्धका तथा डायस्थितिका अल्पबहुत्व भी सम्मिलित किया है। जिस स्थितिस्थानसे अपवर्तनाकरणके यशसे उत्कृष्ट स्थितिको प्राप्त होता है, उतनी स्थितिका नाम डायस्थिति है। या जिस १. मलप्रतौ सादस्स जहएिणयानो इति पाठः । .. २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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