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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे तदियाए हिदीए जहएणयं अणंतगुणं । तिस्से उक्कस्सयं अणंतगुणं । एवमणंतगुणमणंतगुणं याव उकस्सियाए हिदि त्ति । एवं सत्तएणं कम्माणं ।
अज्झवसाणसमुदाहारो समत्तो ।
जीवसमुदाहारो ४२३. जीवसमुदाहारे त्ति । तत्थ ए णाणावरणीयस्स बंधगा जीवा ते दुविहासादबंधा चेव असादबंधा चेव । ए ते सादवंधगा जीवा ते तिविधा-चदुहाणबंधगा तिहाणबंधगा विहाणबंधगा । तत्थ येते असादबंधगा जीवा ते तिविधा---विहाणबंधगा तिहाणबंधगा चदुहाणबंधगा। सव्वविसुद्धा सादस्स चदुहाणबंधगा जीवा । तिहाणबंधगा जीवा संकिलिहतरा। विहाणवंधगा जीवा संकिलितरा । सव्वविसुद्धा असादस्स विडाणबंधगा जीवा । तिहाणबंधगा 'जीवा संकिलिहतरा। चदुद्दाणबंधगा जीवा संकिलितरा।
४२४. सादस्स चदुहाणबंधगा जीवाणाणावरणीयस्स जहएणयं हिदि बंधति । तिट्ठाणबंधगा जीवाणाणावरणीयस्स अजहएणाणुकस्सयं हिदि बंधंति । विहाणबंधगा जीवा सादावेदणीयस्स उकस्सयं हिदि बंधति । असाद० विहाणबंधगा जीवा सहाणेण णाणावरणीयस्स जहएणयं हिदि बंधति । तिहाणबंधगा जीवा पाणावर
स्थितिबन्धाध्यवसायस्थान अनन्तगुणे अनुभागको लिये हुए है। इससे इसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान अनन्तगुणे अनुभागको लिये हुए है । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके प्राप्त होनेतक प्रत्येक स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान उत्तरोत्तर अनन्तगुणे अनन्तगुणे अनुभागको लिये हुए है। इसी प्रकार सात कर्मोका जानना चाहिए। इस प्रकार तीव्रमन्दताका विचार समाप्त हुआ।
इस प्रकार अध्यवसानसमुदाहार समाप्त हुश्रा।
जीव समुदाहार ४२३. अब जीव समुदाहारका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा जो शानावरणकर्मका बन्ध करनेवाले जीव है,वे दो प्रकारके हैं-सातबन्धक और असातबन्धक । जो सातबन्धक जीव हैं,वे तीन प्रकारके हैं--चतुःस्थानबन्धक, त्रिस्थानबन्धक और द्विस्थानबन्धक । जो असात
भक जीव हैं वे तीन प्रकारके हैं-द्विस्थानबन्धक, त्रिस्थानबन्धक और चतास्थानबन्धक । जो सबसे विशुद्ध होते हैं वे साताके चतुःस्थानबन्धक जीव हैं। इनसे त्रिस्थानबन्धक जीव संक्लिष्टतर होते हैं और इनसे द्विस्थानबन्धक जीव संक्लिष्टतर होते हैं। जो सबसे विशुद्ध होते हैं,वे असाताके द्विस्थानबन्धक जीव हैं। इनसे त्रिस्थानबन्धक जीव संक्लिष्टतर होते हैं और इनसे चतुःस्थानबन्धक जीव संक्लिष्टतर होते हैं। . ४२४. साताके चतुःस्थानबन्धक जीव शानावरण कर्मकी जघन्य स्थितिका बन्ध करते हैं। त्रिस्थानबन्धक जीव शानावरणकर्मकी अजघन्यानुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करते हैं । द्विस्थानबन्धक जीव साता वेदनीयकी ही उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करते हैं । असाताके द्विस्थानबन्धक जीव स्वस्थानकी अपेक्षा मानावरण कर्मकी जघन्य स्थितिका बन्ध करते हैं । त्रिस्थानबन्धक
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