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________________ १७४ महाबंधे टिदिबंधाहियारे सम्मामि असणिण त्ति । णवरि आणदादि अवराजिदा त्ति आयु० संखेज्ज कादव्वं । ३४०. मणुसेसु सत्तएणं क० सव्वत्थोवा अवत्त । भुज-अप्पद० असं०गु० । अवहि असं० गु०। आयु. ओघं । एवं मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु । वरि संखेज माणिदव्वं । एवं सव्वह०-आहार-आहारमि०-मणपज्ज०-संजद-सामाइ०छेदोवडा० । णवरि मणपज्ज०-संजद० सत्तएणं क० अवत्त० अत्थि संसाणं णत्थि । ३४१. पंचिंदय०२-पंचमण-पंचवचि०-आभि-सुद-बोधि-चक्खुदं०अोधिदं०-सुक्कले०-सम्मादि०-खइग-उवसम०--सरिण त्ति मणुसभंगो। वरिसुक्कले०-खइग० आयु० मणुसिभंगो । ३४२. तस०२ ओघं ! णवरि असंखेज्जं कादव्वं । एवं तसअप० । वरि अवत्तव्वं पत्थि । ओरालियका० ओघं । णवरि भुज-अप्प० तुल्लं । कम्मइ. सत्तएणं क० सव्वत्थोवा भुज०-अप्प० । अवहि. असं गु० । अवगद० सत्तएणं क० सव्वत्थोवा अवत्त० । भुज० संखेगु० । अप्पद० सं० । अवहि० सं गु० । आनत कल्पसे लेकर अपराजित तकके देवोंमें आयुकर्मके अल्पबहुत्वको कहते समय संख्यातगुणा कहना चाहिए। ३४०. मनुष्यों में सात कमौके प्रवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे भुजगार और अल्पतर पदका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। आयुकर्मके दोनों पदोंका अल्पबहुत्व ओघके समान है। इसी प्रकार मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंके जानना जाहिए। इतनी विशेषता है यहाँ असंख्यातके स्थान पर संख्यात कहना चाहिए। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनःपर्ययज्ञानी और संयत जीवोंके सात कर्मीका प्रवक्तव्य पद है। शेषके नहीं है। ३४१. पञ्चेन्द्रियद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, आभिनिबोधिकशानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और संक्षी जीवों में सब पदों का अल्पबहुत्व मनुष्योंके समान है। इतनी विशेषता है कि शुक्ललेश्यावाले और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें आयुकर्मके दोनों पदोंका अल्पबहुत्व मनुष्यिनियोंके समान है। ३४२. सद्विकमें सब पदोंका अल्पबहुत्व ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि अनन्तके स्थानमें असंख्यात कहना चाहिए । इसी प्रकार अस अपर्याप्तकोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके सात कौका प्रवक्तव्य पद नहीं होता। औदारिक काययोगी जीवों में सब पदोंका अल्पबहुत्व ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि इनके सात कमौके भुजगार और अल्पतर पदका बन्ध करनेवाले जीव तुल्य होते हैं। कार्मणकाययोगी जीवोंमें सात कर्मोंके भुजगार और अल्पतर पदका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। अपगतवेदी जीवों में सात कमौके प्रवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे भुजगारपदका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतरपदका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थितपदका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। सूक्ष्मसाम्परायिक संयत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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