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________________ भुजगारबंधे भागाभागागमो १५९ २६६. मणुस ० ३ सत्तएण क० बंधा यिमा अत्थि । सेसपदा भयfurt | ० दो व पदा भयणिज्जा । एवं पंचिदिय-तस० २- पंचमरण०-पंचवचि०अभि० सुद० अधि० - मरणपज्ज० - संजद ० - चक्खुदं ० - ओधिदं ० - सुकले ० -सम्मादि० खइग०- सरिणति । ३००. मणुसअप ग्रहणं क० सव्वपदा भयणिज्जा । एवं वेडव्वियमि०आहार० - आहारमि० - अवगद ० मुहुमसं०-उवसम० - सासण० - सम्मामि० । ३०१. कम्मइग० - रणाहार० सत्तणं क० भुज० अप्प ० - वहि ० रिणयमा अत्थि । भागाभागागमो । 1 ३०२. भागाभागाणु ० दुवि० – ओघे० दे० | ओघे० सत्तणं क० भुज ०अप्पद ० बंधगा सव्वजीवेहि केवडियो ? असंखेज्जदिभागो । अवट्टि० केव० ? असं खेज्जा भागा । अत्तव्वबंधगा केवडि० १ अतभागो । आयु० अवत्त० बंध०has ० १ असंखेज्जदिभागो । अप्पद ० बंध० केवडि० ? असंखेज्जा भागा । एवं 11 २९९. मनुष्यत्रिकमें सात कर्मोंके अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। श्रयुकर्मके दोनों ही पद भजनीय हैं। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस, त्रसपर्याप्त, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, श्रभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, चतुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिए । विशेषार्थ - यहां सात कमकी अपेक्षा ३ पद भजनीय होनेसे प्रत्येक कर्मका ध्रुव १ और अध्रुव २६ कुल २७ भङ्ग होते हैं । श्रायुकर्मके दोनों पद भजनीय होनेसे कुल ८ अध्रुव भट्ट होते हैं । ३००. मनुष्य अपर्याप्त जीवोंमें आठों कर्मोंके सब पद भजनीय हैं। इसी प्रकार वैक्रियिक मिश्रकाय योगी, श्राहारक काययोगी, आहारक मिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों के जानना चाहिए | विशेषार्थ - इन मार्गणाश्रमें से जिसमें सात कर्मोंकी अपेक्षा जितने पद सम्भव हों, उनके अनुसार अध्रुव भङ्ग ले आने चाहिए । नियमका निर्देश पहले ही कर आये हैं । ३०१. कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सात कर्मोंके भुजगार, श्रल्पतर और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव नियमसे हैं । इस प्रकार नाना जीवकी अपेक्षा भङ्गविचयानुगम समाप्त हुआ । भागाभागानुगम ३०२. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ निर्देश और आदेश निर्देश । श्रधकी अपेक्षा सात कर्मोंके भुजगार और अल्पतर पदका बन्ध करनेवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । श्रवस्थित पदवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । अवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । आयुकर्मके वक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? श्रसंख्यातवें भागप्रभाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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